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रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन वर्ष

सामान्य अध्ययन पेपर II: भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, द्विपक्षीय समूह और समझौते, वैश्विक समूह

चर्चा में क्यों? 

24 फरवरी 2025 को रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन वर्ष पूरे हो गए हैं। इन तीन वर्षों में इस संघर्ष ने लाखों लोगों को प्रभावित किया, लेकिन अभी तक इस युद्ध का समाधान नहीं मिल पाया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप युद्ध समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं, पर हालात अब भी तनावपूर्ण बने हुए हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि

रूस और यूक्रेन के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से गहनता से जुड़े हुए हैं। यूक्रेन का भूभाग प्राचीन काल से विभिन्न साम्राज्यों और राजनीतिक संरचनाओं का हिस्सा रहा है। वर्तमान संघर्ष की जड़ें इतिहास में गहराई से समाई हुई हैं, जिसमें सोवियत संघ का विघटन, नाटो विस्तार और रूस की विदेश नीति प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

    • यूक्रेन-रूस संबंध
      • यूक्रेन और रूस, दोनों देशों का उद्गम एक ही सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से हुआ। 10वीं और 11वीं शताब्दी में ‘कीवयाई रूस’ (Kievan Rus) पूर्वी यूरोप का एक प्रमुख राज्य था, जिसकी राजधानी कीव थी। 
      • यह राज्य पूर्वी स्लाव, बाल्टिक और फिनिक जनजातियों का एक राजनीतिक संघ था। वर्तमान रूस, यूक्रेन और बेलारूस की सांस्कृतिक पहचान की नींव इसी काल में पड़ी।
      • हालांकि, 13वीं शताब्दी में मंगोलों के ‘गोल्डन होर्डे’ हमले के बाद यह राज्य पूरी तरह से बिखर गया। इसके बाद यूक्रेनी भूमि विभिन्न विदेशी शक्तियों के शासन में आती रही। 15वीं शताब्दी में इसका बड़ा भाग लिथुआनिया के ‘ग्रैंड डची’ में शामिल हो गया।
  • रूसी साम्राज्य
    • 18वीं शताब्दी में रूस की महारानी कैथरीन द ग्रेट ने पूरे जातीय यूक्रेन के क्षेत्र को रूसी साम्राज्य में मिला लिया। 
    • इसके बाद ज़ारिस्ट रूस ने यूक्रेन के सांस्कृतिक और भाषायी पहलुओं को दबाने की नीति अपनाई। रूसी भाषा को प्रमुखता दी गई और यूक्रेनी पहचान को कमजोर करने का प्रयास किया गया।
    • हालांकि, इस दौरान बड़ी संख्या में यूक्रेनवासी रूस के अन्य हिस्सों में बस गए और वहां प्रभावशाली पदों तक पहुँचे। लेकिन राष्ट्रवाद की भावना भी लगातार मजबूत होती रही, जो आगे चलकर यूक्रेनी स्वतंत्रता आंदोलन के रूप में उभरकर सामने आई।
  • सोवियत संघ
    • प्रथम विश्व युद्ध के बाद ज़ार शासन का पतन हुआ और सोवियत संघ (USSR) का उदय हुआ। 
    • 1917 की अक्तूबर क्रांति के बाद यूक्रेन में कई छोटे स्वतंत्र राज्यों का गठन हुआ, लेकिन वे लंबे समय तक टिक नहीं सके। अंततः 1922 में यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा बन गया और “यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक” (Ukrainian SSR) के रूप में स्थापित हुआ।
    • हालांकि, सोवियत शासन के दौरान भी यूक्रेन की स्वायत्तता सीमित रही। 1930 के दशक में सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन की नीतियों के कारण यूक्रेन में अकाल (Holodomor) पड़ा, जिसमें लाखों लोग मारे गए। 
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा बना रहा, लेकिन वहां की जनता में स्वतंत्रता की भावना धीरे-धीरे प्रबल होती गई।
  • यूक्रेन की स्वतंत्रता
    • 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ, और इसके साथ ही यूक्रेन ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। 
    • 24 अगस्त 1991 को यूक्रेनी संसद (वेरखोव्ना राडा) ने स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया। इसके बाद दिसंबर 1991 में बेलारूस, रूस और यूक्रेन के नेताओं ने आधिकारिक रूप से सोवियत संघ की सदस्यता त्याग कर स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (CIS) का गठन किया।
    • हालांकि, रूस ने यूक्रेन की पूर्ण स्वतंत्रता को कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। 
    • यूक्रेन की भू-राजनीतिक स्थिति, उसके प्राकृतिक संसाधन और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान के कारण रूस ने हमेशा उसे अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखने का प्रयास किया।
  • नाटो विस्तार
    • 1991 के बाद, यूक्रेन लगातार पश्चिमी देशों के करीब जाने लगा। अमेरिका और यूरोपीय संघ के सहयोग से उसने अपनी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक प्रणाली को लोकतांत्रिक रूप में ढालने की कोशिश की।
    • लेकिन रूस के लिए सबसे बड़ी चिंता उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का विस्तार था।
    • 2004 और 2014 में यूक्रेन में हुए जनआंदोलनों (ऑरेंज रिवॉल्यूशन और यूरोमैदान आंदोलन) के कारण रूसी समर्थित सरकारें गिर गईं और पश्चिमी समर्थित नेतृत्व सत्ता में आया। 
    • यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता लेने की प्रक्रिया तेज कर दी, जिसे रूस अपनी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा मानता था।

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत और प्रमुख घटनाक्रम

रूस-यूक्रेन युद्ध केवल एक दिन में शुरू नहीं हुआ, बल्कि इसके बीज कई वर्षों से बोए जा रहे थे। यह संघर्ष फरवरी 2014 में क्रीमिया संकट से शुरू हुआ और धीरे-धीरे एक बड़े सैन्य टकराव में बदल गया। इस दौरान रूस और यूक्रेन के बीच कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं, जिन्होंने इस युद्ध को और जटिल बना दिया।

  • क्रीमिया संकट: फरवरी 2014 में यूक्रेन में यूरोमैदान आंदोलन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को सत्ता से हटा दिया गया। यह परिवर्तन रूस के लिए एक बड़ा झटका था क्योंकि यानुकोविच एक रूसी समर्थक नेता थे। सत्ता परिवर्तन के बाद यूक्रेन पश्चिमी देशों के करीब जाने लगा, जिससे रूस नाराज हुआ।
    • इसके तुरंत बाद रूस ने क्रीमिया में अज्ञात वर्दीधारी सैनिक भेजे, जिन्हें बाद में “लिटिल ग्रीन मैन” (छोटे हरे आदमी) कहा गया।
    • इन सैनिकों ने क्रीमिया की महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों, हवाई अड्डों और सैन्य अड्डों पर कब्जा कर लिया।
    • रूस ने क्रीमिया की संसद को भंग कर वहां अपनी समर्थक सरकार स्थापित कर दी।
    • मार्च 2014 में रूस ने क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया, जिसमें दावा किया गया कि 97% लोगों ने रूस में शामिल होने का समर्थन किया।
    • 18 मार्च 2014 को रूस ने आधिकारिक रूप से क्रीमिया को अपने में मिला लिया।
    • इस अधिग्रहण के बाद पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र ने इसे अवैध करार दिया।
    • यूक्रेन ने रूस पर अपनी संप्रभुता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और संघर्ष की शुरुआत हो गई।
  • डोनबास क्षेत्र में तनाव: क्रीमिया के कब्जे के तुरंत बाद पूर्वी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क) में रूस समर्थित अलगाववादियों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।
    • अप्रैल 2014 में डोनबास क्षेत्र के अलगाववादी समूहों ने “डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक” (DPR) और “लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक” (LPR) के गठन की घोषणा कर दी।
    • यूक्रेन की सेना ने अलगाववादियों को काबू में करने के लिए सैन्य अभियान शुरू किया।
    • इसमें रूस पर अलगाववादियों को हथियार और सैन्य सहायता देने का आरोप लगा, हालांकि रूस ने इससे इनकार किया।
    • इस संघर्ष में हजारों नागरिक मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए।
  • 2014-2021 तनाव
    • 2015 में मिन्स्क समझौता हुआ, जिसके तहत संघर्ष विराम लागू करने की कोशिश की गई, लेकिन यह कभी पूरी तरह सफल नहीं हुआ।
    • 2018 में रूस ने आज़ोव सागर में यूक्रेनी नौसैनिक जहाजों पर हमला किया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।
    • 2019-2021 के दौरान रूस ने यूक्रेन की सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ा दी।
  • 2022: पूर्ण पैमाने पर युद्ध 
    • 21 फरवरी 2022 को रूस ने डोनेट्स्क और लुहान्स्क के अलगाववादी गणराज्यों को आधिकारिक मान्यता दे दी।
    • 22 फरवरी 2022 को रूसी सेना इन क्षेत्रों में “शांति स्थापना” के नाम पर दाखिल हो गई।
    • 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर हमला कर दिया।
    • रूस ने तीन दिशाओं से यूक्रेन पर हमला किया – उत्तर से बेलारूस के जरिए, पूर्व से डोनबास के जरिए और दक्षिण से क्रीमिया के जरिए।
    • राजधानी कीव को घेरने की कोशिश की गई, लेकिन यूक्रेनी सेना ने कड़ी प्रतिरोध किया।
    • रूस ने प्रमुख शहरों, जैसे मारियुपोल, खार्किव और खेरसॉन पर हमला किया।
    • पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियारों और सैन्य मदद भेजनी शुरू कर दी।
    • तब से अब तक यह युद्ध जारी है। अब यह युद्ध केवल दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी देशों और रूस के बीच शक्ति संतुलन की लड़ाई बन चुका है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के व्यापक प्रभाव

रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा आपूर्ति, मानवाधिकारों और सामाजिक स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। 

  • आर्थिक प्रभाव: युद्ध से पहले रूस यूरोप को बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस और तेल की आपूर्ति करता था, लेकिन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए।
    • युद्ध से पहले यूरोप की गैस आपूर्ति का बड़ा हिस्सा रूस से आता था, लेकिन अब यह घटकर केवल 8% रह गया है।
    • यूरोप ने अमेरिका, नॉर्वे और कतर से तरल प्राकृतिक गैस (LNG) का आयात बढ़ा दिया है, जिससे ऊर्जा की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं।
    • ऊर्जा लागत बढ़ने से यूरोप का औद्योगिक उत्पादन प्रभावित हुआ है, जिससे मुद्रास्फीति (inflation) बढ़ी और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ा।
  • रूसी अर्थव्यवस्था: युद्ध के चलते रूस पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा।
    • रूसी बैंकों को SWIFT से हटाया गया, जिससे रूस का अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाधित हुआ।
    • विदेशी कंपनियों ने रूस छोड़ दिया, जिससे बेरोजगारी बढ़ी और आर्थिक अस्थिरता बढ़ी।
    • रूसी तेल और गैस पर यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगाया, जिससे रूस को अपने संसाधनों को चीन और भारत की ओर मोड़ना पड़ा।
    • रूस निकल (nickel) और एल्यूमीनियम (aluminum) का बड़ा उत्पादक है, युद्ध के कारण इनकी आपूर्ति में रुकावट आई।
  • मानवीय संकट: युद्ध में हजारों सैनिकों और आम नागरिकों की जान गई। यूक्रेनी शहरों पर बमबारी से बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हुआ। साथ ही स्कूल, अस्पताल, और आवासीय इलाकों को भी युद्ध की विभीषिका झेलनी पड़ी।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 1 करोड़ से अधिक लोग युद्ध के कारण विस्थापित हुए। यूरोपीय देशों पर शरणार्थियों का बोझ बढ़ गया, जिससे सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
    • युद्ध के कारण बच्चों की शिक्षा बाधित हुई, स्कूल बंद हो गए, और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा।
    • महिलाओं को संघर्ष और हिंसा का सामना करना पड़ा, जिससे लैंगिक हिंसा और मानव तस्करी के मामले बढ़े।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: युद्ध में शामिल सैनिकों और आम नागरिकों को पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) और मानसिक आघात का सामना करना पड़ा।
    • चिकित्सा सुविधाएँ ध्वस्त होने से बीमारियों का प्रकोप बढ़ा और स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुँच कम हो गई।
    • रेडियोधर्मी और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से लंबे समय तक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ गई।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर बमबारी और गोलाबारी से पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुँची।
    • विस्फोटों से जहरीली गैसें फैलीं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ा।
    • युद्धग्रस्त क्षेत्रों में जल स्रोत प्रदूषित हुए और कृषि भूमि बर्बाद हो गई।

रूस-यूक्रेन संघर्ष पर वैश्विक प्रतिक्रिया

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से, दुनिया के विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस संकट को हल करने के लिए अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ दी हैं। 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस युद्ध में यूक्रेन का सबसे बड़ा समर्थन किया है। अमेरिका ने 70 अरब डॉलर से अधिक की सैन्य और वित्तीय सहायता प्रदान की है।
  • ब्रिटेन और जर्मनी ने यूक्रेन को हथियारों और वित्तीय सहायता के रूप में महत्वपूर्ण मदद दी।
  • पोलैंड और बाल्टिक देशों ने शरणार्थियों को शरण दी और सैन्य सहयोग बढ़ाया।
  • युद्ध के बाद, अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान ने रूस पर कड़े आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगाए।
  • संयुक्त राष्ट्र (UN) ने युद्ध को समाप्त करने के लिए कई प्रस्ताव पारित किए और राजनयिक वार्ता को बढ़ावा दिया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्तावों को पारित किया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने युद्धविराम (Ceasefire) और शांति वार्ता के लिए रूस और यूक्रेन के नेताओं से संपर्क किया।
  • नाटो ने सीधे युद्ध में भाग नहीं लिया, लेकिन उसने यूक्रेन को हरसंभव सहायता दी। नाटो देशों ने यूक्रेन को उन्नत हथियार, ड्रोन और वायु रक्षा प्रणाली प्रदान की।
  • G-7 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा और जापान) ने रूस की कार्रवाई को अवैध और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया।
  • भारत ने इस संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया और युद्ध समाप्त करने के लिए संवाद (Dialogue) और कूटनीति (Diplomacy) पर जोर दिया।
  • चीन ने रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया और युद्ध को “आक्रमण” कहने से बचता रहा। चीन ने 2023 में शांति योजना पेश की, लेकिन पश्चिमी देशों ने इसे रूस-समर्थक बताया।
  • संयुक्त राष्ट्र ने काला सागर अनाज पहल (Black Sea Grain Initiative) शुरू की, जिससे यूक्रेन का अनाज वैश्विक बाजार तक पहुँच सके।

आगे की राह

  • युद्धविराम और संवाद: रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए संघर्षरत पक्षों को संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता देनी होगी। हिंसा का निरंतर बढ़ना न केवल यूक्रेन और रूस बल्कि पूरे विश्व के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। युद्ध समाधान नहीं है, बल्कि विनाश की ओर ले जाने वाला मार्ग है। 
  • अंतरराष्ट्रीय कानून: संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून स्पष्ट रूप से कहते हैं कि युद्ध के दौरान नागरिकों और नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध में बार-बार इन सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान के बिना, वैश्विक स्थिरता असंभव है। पश्चिमी देशों, संयुक्त राष्ट्र, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को सुनिश्चित करना होगा कि सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानवीय सिद्धांतों का पालन करें। 
  • मिंस्क शांति प्रक्रिया: रूस और यूक्रेन के बीच स्थायी शांति स्थापित करने के लिए “मिंस्क शांति प्रक्रिया” को पुनर्जीवित करना एक संभावित समाधान हो सकता है। यह समझौता पूर्व में डोनबास क्षेत्र में संघर्ष को हल करने के लिए लाया गया था, लेकिन इसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया। पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ को, रूस और यूक्रेन दोनों को इस प्रक्रिया के अनुरूप अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। 

UPSC पिछले वर्ष का प्रश्न (PYQ)

प्रश्न: द्विपक्षीय निवेश संवर्धन और संरक्षण समझौते के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें। 

(1) इसका उद्देश्य किसी दूसरे देश के क्षेत्र में किसी भी देश के निवेशकों के हित को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है। 

(2) यह निवेश विवादों के निपटारे के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के समान उद्देश्य को पूरा करता है। 

इनमें से कौन सा कथन गलत है? 

  1. केवल 1 
  2. केवल 2 
  3. दोनों 1 और 2 
  4. इनमें से कोई भी नहीं

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