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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

सामान्य अध्ययन पेपर II: संवैधानिक निकाय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली सरकार को 2021-22 की आबकारी नीति से 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। यह नीति 9 महीने बाद वापस ले ली गई थी, जब जुलाई 2022 में सीबीआई ने इसकी जांच शुरू की। रिपोर्ट में नीति की खामियों, विशेषज्ञ समिति की अनदेखी और संभावित गड़बड़ियों पर सवाल उठाए गए हैं। 

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) का परिचय

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) देश की वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सरकारी खर्चों की निगरानी करता है और जनता के धन के उचित उपयोग को सुनिश्चित करता है। यह एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय लेन-देन की लेखा परीक्षा (ऑडिट) करती है।

  • CAG की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत की गई थी। यह संस्था भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त की जाती है और इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए इसे विशेष अधिकार दिए गए हैं।
  • CAG का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा किए गए व्यय की निष्पक्ष जांच करना और यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी धन का उपयोग सही उद्देश्य के लिए हो रहा है।
  • CAG केवल एक लेखा परीक्षक (Auditor) नहीं है, बल्कि यह संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC) के लिए एक मार्गदर्शक, मित्र और दार्शनिक के रूप में कार्य करता है। 
  • CAG की रिपोर्ट्स संसद और विधानसभाओं में प्रस्तुत की जाती हैं, जिससे सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहती है।
    • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने CAG को भारतीय संविधान का “सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी” कहा था, क्योंकि यह संस्था सरकार की वित्तीय जवाबदेही तय करने में अहम भूमिका निभाती है। यह न केवल सरकारी खातों का लेखा परीक्षण करता है, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सरकारी एजेंसियों के वित्तीय मामलों की भी जांच करता है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: CAG का अस्तित्व ब्रिटिश शासन के दौरान भी था, लेकिन तब इसकी शक्तियाँ सीमित थीं। इसका विकास कई चरणों में हुआ:
    • 1858: भारत में महालेखाकार (Accountant General) का पद स्थापित किया गया, जब ईस्ट इंडिया कंपनी से सत्ता ब्रिटिश सरकार को हस्तांतरित हुई।
    • 1860: सर एडवर्ड ड्रमंड को भारत का पहला ऑडिटर जनरल नियुक्त किया गया।
    • 1919: भारत सरकार अधिनियम के तहत इस पद को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया और इसे वैधानिक दर्जा दिया गया।
    • 1935: भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने महालेखापरीक्षक की शक्तियों को और मजबूत किया और इसे संघीय एवं प्रांतीय स्तर पर वित्तीय निरीक्षण का अधिकार दिया।
    • 1947: स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान में CAG के पद को और स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया।
    • 1971: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 लागू किया गया, जिसने CAG की भूमिका को विधिवत रूप से निर्धारित किया।
    • 1976: CAG को लेखांकन के कार्यों से मुक्त कर केवल लेखा परीक्षा तक सीमित कर दिया गया।

आज, CAG सरकार के वित्तीय लेन-देन की पारदर्शिता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसकी रिपोर्ट सरकार की जवाबदेही तय करने में मदद करती है।

भारतीय संविधान में CAG की भूमिका

भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) एक स्वतंत्र संवैधानिक पद है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक CAG की नियुक्ति, शक्तियाँ, कर्तव्य और कार्यप्रणाली का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, कुछ अन्य संवैधानिक प्रावधान भी इसकी भूमिका को परिभाषित करते हैं।

  • अनुच्छेद 148: संविधान का अनुच्छेद 148 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति, शपथ और सेवा शर्तों को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद CAG की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान करता है, जिससे सरकार का कोई भी अंग इसके कार्यों में हस्तक्षेप न कर सके। 
  • अनुच्छेद 149: CAG की भूमिका सिर्फ वित्तीय लेखा परीक्षण (ऑडिट) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकारी खर्चों की वैधता और औचित्य की भी निगरानी करता है। अनुच्छेद 149 CAG को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों, सरकारी कंपनियों, स्वायत्त निकायों और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं के खातों की जांच करे।
  • अनुच्छेद 150: संघ और राज्य सरकारों के खाते किस प्रारूप में रखे जाएंगे, यह अनुच्छेद 150 के तहत निर्धारित किया जाता है। इसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि राष्ट्रपति, CAG की सलाह के आधार पर खातों का प्रारूप तय करेगा। 
  • अनुच्छेद 151: CAG द्वारा की गई ऑडिट रिपोर्ट को सरकार तक पहुँचाने और सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी अनुच्छेद 151 के अंतर्गत निर्धारित की गई है। संघीय (केंद्र सरकार) स्तर पर तैयार की गई रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती है, जो इसे संसद के समक्ष रखते हैं। इसी तरह, राज्य सरकार की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी जाती है।
  • अनुच्छेद 279: CAG का कार्य केवल व्यय की जाँच तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकार की आय की सटीकता की भी पुष्टि करता है। अनुच्छेद 279 के तहत CAG “शुद्ध आगम” की गणना को प्रमाणित करता है।
  • तीसरी अनुसूची: CAG की निष्पक्षता और संविधान के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिए, तीसरी अनुसूची के धारा IV में CAG की शपथ का प्रावधान किया गया है। 
  • छठी अनुसूची: छठी अनुसूची के तहत, CAG को जिला और क्षेत्रीय परिषदों के खातों की निगरानी और ऑडिट करने का अधिकार दिया गया है। यह रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी जाती है, जो इसे संबंधित परिषदों के समक्ष प्रस्तुत करता है। 

CAG की नियुक्ति और अन्य प्रावधान 

  • नियुक्ति: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति एक विशेष प्रक्रिया के तहत की जाती है, जिससे उसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और राष्ट्रीय मुहर सहित एक अधिकार-पत्र (Warrant) जारी करके CAG की नियुक्ति करता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि CAG पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण से मुक्त रहे और बिना किसी दबाव के अपने कार्य कर सके।
  • कार्यकाल: CAG का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है, जो भी पहले पूरा हो जाए। यह प्रावधान इस पद की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए किया गया है, ताकि CAG दीर्घकालिक राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रह सके। कार्यकाल की समयसीमा यह सुनिश्चित करती है कि CAG को पर्याप्त समय मिले ताकि वह सरकारी वित्तीय प्रशासन की गहन समीक्षा कर सके और प्रभावी लेखा परीक्षण (ऑडिट) कर सके।
  • शपथ: CAG की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए इसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान शपथ दिलाई जाती है। यह शपथ CAG को संविधान के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखने, बिना किसी भय, पक्षपात, अनुराग या द्वेष के अपने कर्तव्यों का पालन करने और राष्ट्रहित में कार्य करने के लिए बाध्य करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि CAG किसी भी राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहे।

स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाले प्रावधान

  • CAG का वेतन और अन्य सेवा शर्तें नियुक्ति के बाद बदली नहीं जा सकतीं, जिससे यह सुनिश्चित हो कि सरकार इसे अपने पक्ष में प्रभावित न कर सके। 
  • CAG के कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, जिसमें वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि से सीधे व्यय किया जाता है। इस व्यय पर संसद में मतदान नहीं किया जा सकता।
  • CAG पर एक विशेष प्रावधान लागू किया गया है कि सेवानिवृत्त होने के बाद वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य पद को स्वीकार नहीं कर सकता। 
  • CAG के प्रशासनिक अधिकार और इसके अधीन सेवारत कर्मचारियों की सेवा शर्तें राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती हैं, लेकिन इसके लिए CAG से परामर्श लेना अनिवार्य है।
  • CAG को हटाने की प्रक्रिया: CAG को हटाने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान रखी गई है। इसे संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। 

CAG की शक्तियाँ और उत्तरदायित्व

  • CAG का सबसे महत्वपूर्ण कार्य संविधान द्वारा स्थापित विभिन्न निधियों की लेखा परीक्षा करना है। इसमें भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India), लोक लेखा (Public Account) और प्रत्येक राज्य की आकस्मिक निधि (Contingency Fund) शामिल हैं। CAG यह सुनिश्चित करता है कि इन निधियों से किए गए सभी व्यय संवैधानिक और वित्तीय प्रावधानों के अनुरूप हों।
  • CAG का एक अन्य प्रमुख दायित्व सरकार द्वारा संकलित करों और शुल्कों की शुद्ध आय की जांच करना और इसे प्रमाणित करना है। यह प्रमाण पत्र राज्यों और केंद्र सरकार के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण के लिए आवश्यक होता है। CAG यह सुनिश्चित करता है कि सरकार द्वारा प्राप्त राजस्व सही तरीके से दर्ज किया गया हो और इसमें कोई अनियमितता न हो।
  • CAG यह सुनिश्चित करता है कि सरकार द्वारा सार्वजनिक वित्त का उपयोग कानूनी, कुशल और प्रभावी तरीके से हो रहा है। इसके तहत यह समीक्षा की जाती है कि सरकार द्वारा आवंटित धनराशि निर्धारित उद्देश्यों के लिए खर्च की गई है या नहीं और क्या व्यय सरकारी प्राधिकरण के निर्देशों के अनुसार किया गया है। 
  • CAG न केवल केंद्र और राज्य सरकारों के खातों की जांच करता है, बल्कि यह सरकारी निगमों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) और सरकार द्वारा वित्तपोषित अन्य निकायों के खातों की भी लेखा परीक्षा करता है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग न हो और यह सही दिशा में खर्च किया जाए।
  • CAG को यह अधिकार प्राप्त है कि वह ऑडिट के तहत आने वाले किसी भी सरकारी कार्यालय, निगम या संगठन के रिकॉर्ड, दस्तावेज़ और वित्तीय लेन-देन की पूरी तरह से जाँच कर सके। इसके अलावा, यह संबंधित अधिकारियों से प्रश्न पूछने और स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार भी रखता है, जिससे वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया जा सके।
  • CAG द्वारा तैयार की गई ऑडिट रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती है, जो इसे संसद के समक्ष रखता है। इन रिपोर्टों की गहन समीक्षा लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC) द्वारा की जाती है।
  • CAG की भूमिका केवल कानूनी और नियामक लेखा परीक्षा (Regulatory & Compliance Audit) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह औचित्य संबंधी लेखा परीक्षा (Performance Audit) भी करता है। यदि कोई अनावश्यक खर्च या धन का दुरुपयोग होता है, तो CAG उस पर स्पष्ट टिप्पणी करता है और सुधारात्मक सुझाव देता है।
  • CAG के पास यह शक्ति भी होती है कि वह किसी विशेष सरकारी योजना, परियोजना या संगठन के वित्तीय मामलों की समीक्षा कर सकता है, भले ही यह कानूनी रूप से अनिवार्य न हो। इसे स्वामित्व संबंधी ऑडिट (Proprietary Audit) कहा जाता है। यह ऑडिट वैकल्पिक होता है, लेकिन यदि सरकार से जुड़ी कोई संस्था वित्तीय अनियमितताओं या दुरुपयोग में संलिप्त पाई जाती है, तो CAG इस प्रकार की जाँच कर सकता है।

 CAG की आलोचना और चुनौतियाँ

  • कार्योत्तर लेखापरीक्षा: CAG का लेखापरीक्षा कार्य मुख्य रूप से कार्योत्तर (Ex-Post) होता है, यानी यह सरकारी खर्च के बाद लेखापरीक्षा करता है, न कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेता है। इससे वित्तीय कुप्रबंधन को पहले से रोकने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • अपर्याप्त आर्थिक विशेषज्ञता: CAG को प्राकृतिक संसाधनों, वित्तीय अनुबंधों और कॉर्पोरेट संरचनाओं जैसे जटिल विषयों में विशेषज्ञता की कमी के कारण आलोचना झेलनी पड़ती है। वर्तमान में सरकारी वित्तीय तंत्र बहुत अधिक जटिल हो गया है, जिससे भ्रष्टाचार और प्रशासनिक खामियों को पहचानना आसान नहीं होता।
  • समय पर उपलब्धता: CAG को किसी भी सरकारी कार्यालय का निरीक्षण करने और किसी भी खाते की जानकारी मांगने का अधिकार है। लेकिन व्यावहारिक रूप में, कई बार ऑडिट में बाधा डालने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ ऑडिट प्रक्रिया के अंत में उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे सही समय पर जांच और विश्लेषण करने में कठिनाई होती है। 
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): CAG का कार्यक्षेत्र अब केवल सरकारी खर्च तक सीमित नहीं है। इसे केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं का भी ऑडिट करना पड़ता है। इन परियोजनाओं की जटिलता, वित्तीय संरचना और अनुबंधों की पारदर्शिता को देखते हुए CAG के लिए इनका प्रभावी ऑडिट करना एक बड़ी चुनौती बन गया है।
  • गिरावट: CAG द्वारा संसद में प्रस्तुत लेखापरीक्षा रिपोर्टों की संख्या में काफी कमी आई है। वर्ष 2015 में जहां 53 रिपोर्टें प्रस्तुत की गई थीं, वहीं 2023 तक यह संख्या घटकर मात्र 18 रह गई। 
  • अंतर्राष्ट्रीय तुलना: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, UK के CAG का कार्यकाल 10 वर्ष और अमेरिका के नियंत्रक महाप्रबंधक का कार्यकाल 15 वर्ष का होता है। भारत में कैग का कार्यकाल केवल 6 वर्ष का ही है, इस कारण भारत में CAG का कार्यकाल बढ़ाने और इसे अधिक स्वतंत्र बनाने की माँग लगातार उठती रही है।
  • IA&AD की भूमिका: CAG द्वारा किए जाने वाले लेखा परीक्षण वास्तव में Indian Audit and Accounts Department (IA&AD) के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऑडिट निष्पक्ष और प्रभावी हो, IA&AD को भी प्रशिक्षण, तकनीकी संसाधन और आवश्यक कानूनी अधिकार दिए जाने चाहिए।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2012): लोक निधि के फलोत्पादक और आशायित प्रयोग को सुरक्षित करने के साथ-साथ भारत में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (CAG) के कार्यालय का महत्त्व क्या है? 

1- CAG संसद की ओर से राजकोष पर नियंत्रण रखता है जब भारत का राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात/वित्तीय आपात घोषित करता है।

2- मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित परियोजनाओं या कार्यक्रमों पर CAG द्वारा जारी किये गए प्रतिवेदनों पर लेखा समिति विचार-विमर्श करती है।

3- CAG के प्रतिवेदनों से मिली जानकारियों के आधार पर जाँचकर्त्ता एजेंसियाँ उन लोगों के विरूद्ध आरोप दाखिल कर सकती है जिन्होनें लोक निधि प्रबंधन में कानून का उल्लंघन किया हो।

4- CAG को ऐसी मिश्रित न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं कि सरकारी कंपनियों के लेखा-परीक्षा और लेखा जाँच करते समय वह कानून का उल्लंघन करने वालों पर अभियोग लगा सके।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1, 3 ओर 4

(b) केवल 2

(c) केवल 2 और 3 

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c

प्रश्न (2018): “नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।” समझाएँ कि यह उसकी नियुक्ति की पद्धति और शर्तों के साथ-साथ उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की सीमा में कैसे परिलक्षित होती है?

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