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संदर्भ:
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम माना गया था। हालांकि, समय के साथ इसकी प्रभावशीलता कमजोर होती गई है, जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि RTI अब सूचना प्रदान करने का माध्यम नहीं, बल्कि ‘सूचना नकारने का अधिकार’ बनता जा रहा है।
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005:
परिचय:
सूचना का अधिकार अधिनियम नागरिकों को सरकार की सूचनाओं का वास्तविक स्वामी मानता है और ‘स्वराज’ (आत्म-शासन) की अवधारणा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करता है। यह नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है, जिससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
RTI अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ:
- सूचना प्राप्त करने का अधिकार:
- कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना का अनुरोध कर सकता है।
- संबंधित विभाग को 30 दिनों के भीतर (या जीवन और स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में 48 घंटे के भीतर) जवाब देना अनिवार्य है।
- लागू क्षेत्र:
- यह अधिनियम केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों सहित सभी सरकारी संस्थानों पर लागू होता है।
- सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और अन्य संस्थानों पर भी यह लागू होता है।
- सार्वजनिक सूचना अधिकारी (PIOs): प्रत्येक सरकारी विभाग को PIO नियुक्त करना अनिवार्य है, जो RTI अनुरोधों को संभालने और आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- अपील तंत्र:
- यदि आवेदक को प्राप्त उत्तर संतोषजनक न लगे, तो वह पहले अपीलीय प्राधिकारी (First Appellate Authority) के पास अपील कर सकता है।
- इसके बाद भी समाधान न मिलने पर केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग (Central/State Information Commission) में अपील की जा सकती है।
- दंड का प्रावधान: यदि कोई अधिकारी तय समय सीमा में सूचना प्रदान करने में विफल रहता है या गलत जानकारी देता है, तो उस पर ₹25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
सूचना के अधिकार (RTI) की सीमाएँ:
- धारा 8 के तहत छूट: कुछ विशेष श्रेणियों की सूचनाएँ RTI के तहत सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं, जैसे:
- राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से संबंधित मामले।
- व्यक्तिगत गोपनीयता से जुड़ी जानकारियाँ।
- सूचनाओं में देरी या अधूरी जानकारी: नौकरशाही में देरी और जवाबदेही की कमी के कारण कई बार सूचना अधूरी या बहुत देर से मिलती है, जिससे RTI की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
- RTI कार्यकर्ताओं को धमकी और उत्पीड़न: भ्रष्टाचार उजागर करने वाले RTI कार्यकर्ताओं को अक्सर धमकियों, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
कमजोर होते RTI अधिनियम के प्रभाव:
- सरकारी जवाबदेही और पारदर्शिता में कमी:
- RTI का उद्देश्य सरकार को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना था।
- सूचना आयोगों की निष्क्रियता, विलंब, और अदालती प्रतिबंधों से जवाबदेही कमजोर हो रही है।
- गिरीश रामचंद्र देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना आयोग (2012) फैसले ने अधिकारियों को महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने का आधार दिया।
- भ्रष्टाचार और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग में वृद्धि:
- RTI भ्रष्टाचार रोकने में सहायक था, लेकिन इसकी कमजोर क्रियान्वयन से घोटाले छिपाना आसान हो गया है।
- सरकारी अनुबंध, वित्तीय आवंटन में पारदर्शिता घट रही है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है।
- खोजी पत्रकारिता और जनजागरूकता पर असर:
- पत्रकार और शोधकर्ता RTI के माध्यम से सरकारी नीतियों और भ्रष्टाचार का खुलासा करते थे।
- सूचना देने से सरकारी विभागों की हिचकिचाहट के कारण पारदर्शिता और निष्पक्ष रिपोर्टिंग प्रभावित हो रही है।