Sukhoi Su-57E
संदर्भ:
रूस अपने पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट Sukhoi Su-57E को वैश्विक रक्षा बाज़ार में स्थापित करने की कोशिशों में जुटा है। हालांकि भारत, मलेशिया और अल्जीरिया जैसे रणनीतिक साझेदारों को आकर्षित करने के प्रयासों के बावजूद इसकी निर्यात सफलता अब भी अनिश्चित बनी हुई है।
(Sukhoi Su-57E) सुखोई Su-57E:
परिचय:
- Sukhoi Su-57E रूस द्वारा विकसित एक पांचवीं पीढ़ी का ट्विन-इंजन स्टील्थ मल्टीरोल फाइटर जेट है।
- यह भारत को संयुक्त उत्पादन (Joint Production) के लिए पेश किया गया है।
मुख्य विशेषताएँ (Features):
स्टील्थ तकनीक (Stealth): इसमें serrated exhaust nozzle है, जो इसकी रडार और इन्फ्रारेड पहचान को कम करता है।
हथियार क्षमता (Weapon Payload):
- लगभग 7.4 टन तक हथियार ढोने की क्षमता।
- Air-to-Air और Air-to-Ground मिसाइलें ले जाने में सक्षम।
अधिकतम गति (Maximum Speed): लगभग Mach 1.8 (ध्वनि की गति से 1.8 गुना)।
अधिकतम ऊंचाई (Maximum Operating Altitude): 54,100 फीट तक उड़ान भरने में सक्षम।
कॉम्बैट रेंज (Combat Range): लगभग 1,864 मील (करीब 3,000 किमी)।
Sukhoi Su-57E: निर्यात महत्वाकांक्षाएँ और चुनौतियाँ:
निर्यात लक्ष्य (Export Targets):
- रूस ने भारत, मलेशिया, और अल्जीरिया जैसे देशों को Sukhoi Su-57E की पेशकश की है।
- यह विमान एशिया और उत्तरी अफ्रीका में एक मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है।
प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges):
- पुष्ट ग्राहक नहीं: अभी तक किसी भी देश ने इस विमान को खरीदने की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
- अल्जीरिया की अटकलें:
- अल्जीरिया को पहला संभावित ग्राहक माना जाता है, लेकिन कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
तकनीकी व राजनीतिक चिंताएँ:
- कई देश रूसी तकनीक और अमेरिका-प्रेरित CAATSA प्रतिबंधों के चलते सतर्क हैं।
- कम युद्ध परिक्षण डेटा और प्रारंभिक उत्पादन चरण में होना भी खरीदारों को हतोत्साहित करता है।
भारत की निलंबित FGFA परियोजना:
परियोजना की शुरुआत:
- 2007: भारत और रूस ने Fifth-Generation Fighter Aircraft (FGFA) को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए समझौता किया।
- यह परियोजना रूस के Su-57 पर आधारित थी।
परियोजना की रूपरेखा: 2010: भारत के लिए एक twin-seat Su-57 संस्करण की योजना बनाई गई, जिसमें भारतीय वायुसेना (IAF) की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलन किया जाना था।
परियोजना निलंबन (Suspension in 2018):
भारत ने इस परियोजना में अपनी भागीदारी रोक दी, मुख्य रूप से इन कारणों से:
- लागत को लेकर असहमति।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer) पर स्पष्टता की कमी।
- IAF की चिंताएँ:
- Stealth क्षमता अपेक्षाओं से कम।
Supercruise प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था।