IndiGo Ordered to Terminate Lease Agreement with Turkish Airlines
सामान्य अध्ययन पेपर II: भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने इंडिगो को तुर्की एयरलाइंस से लिए गए विमानों की लीज़ समाप्त करने का आदेश दिया। नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने तीन महीने की अतिरिक्त अनुमति के बाद इस समझौते को समाप्त करने का निर्देश जारी किया है।
- इंडिगो ने इन विमानों को नवंबर 2025 तक संचालित करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन DGCA ने उस अनुरोध को खारिज कर दिया।
इंडिगो और तुर्की एयरलाइंस की साझेदारी
- इंडिगो और तुर्की एयरलाइंस के बीच यह साझेदारी 2023 में शुरू हुई।
- इस समझौते में डैम्प लीज़ (Damp Lease) के अंतर्गत, तुर्की एयरलाइंस इंडिगो को विमान, उनके पायलट और कुछ क्रू सदस्य उपलब्ध कराती है।
- इसमें बुकिंग, ग्राउंड हैंडलिंग और टिकटिंग का कार्य इंडिगो संभालती है। यह मॉडल इंडिगो को बिना ज्यादा निवेश किए अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर संचालन को आसान बनाता है।
- दोनों एयरलाइनों के बीच कोडशेयरिंग समझौता भी लागू है। इसके माध्यम से इंडिगो, तुर्की एयरलाइंस की उड़ानों के जरिए लगभग 40 अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर सेवा प्रदान करती है। इससे भारतीय यात्रियों को कम कीमत पर यूरोप, अमेरिका और एशिया के कई हिस्सों में यात्रा करने का मौका मिलता है।
- इसमें इंडिगो, तुर्की एयरलाइंस के चौड़े शरीर वाले बड़े विमानों का उपयोग कर सकती हैं, जिनकी क्षमता अधिक होती है। इससे वह एक ही उड़ान में अधिक यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों तक पहुंचा पाने में सक्षम थे।
- इंडिगो ने तुर्की एयरलाइंस से दो बोइंग 777-300ER विमान डैम्प लीज़ पर लिए हुए हैं। इन विमानों का उपयोग वह अपनी दिल्ली-इस्तांबुल और मुंबई-इस्तांबुल जैसी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में करती है।
(IndiGo Ordered to Terminate Lease Agreement with Turkish Airlines) इंडिगो को तुर्की एयरलाइंस से लीज़ समझौता समाप्त करने का आदेश क्यों दिया गया?
- तुर्की-पाकिस्तान सहयोग: हाल के वर्षों में तुर्की ने पाकिस्तान को सैन्य उपकरणों और प्रशिक्षण के रूप में समर्थन दिया है। विशेष रूप से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियानों के समय, जब भारत पाकिस्तान से तनाव की स्थिति में था, उस दौरान तुर्की की भूमिका को भारत ने संदेह की दृष्टि से देखा। इस पृष्ठभूमि में तुर्की एयरलाइंस से लीज़ पर विमान लेने वाली इंडिगो एयरलाइन पर सरकारी निगरानी स्वाभाविक हो गई।
- हवाई संप्रभुता को जोखिम: डैम्प लीज़ व्यवस्था में भारत की हवाई सेवाओं की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी विदेशी नियंत्रण में चली जाती है। इससे भारत की हवाई संप्रभुता और स्वावलंबन पर सीधा असर पड़ता है। अगर कोई राजनीतिक या सैन्य तनाव पैदा होता है, तो ऐसे विदेशी तत्व भारत के रणनीतिक विमानन संचालन को प्रभावित कर सकते हैं।
- रणनीतिक कदम: सरकार चाहती है कि देश की एयरलाइंस लंबे रूट्स पर संचालन के लिए विदेशी संसाधनों पर निर्भर न रहें। सरकार अब विदेशी एयरलाइनों से रणनीतिक क्षेत्रों में दीर्घकालिक समझौतों को हतोत्साहित करना चाहती है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है, और विदेशी हस्तक्षेप को सीमित किया जा रहा है।
भारत-तुर्की हवाई सेवा समझौता
- भारत और तुर्की के बीच एक द्विपक्षीय हवाई सेवा समझौता लागू है, जो दोनों देशों को प्रतिसप्ताह कुल 56 उड़ानें संचालित करने की अनुमति देता है। इसमें से 28 उड़ानें भारत से तुर्की और उतनी ही 28 तुर्की से भारत आने-जाने वाली उड़ानों के लिए तय की गई हैं।
- इस व्यवस्था का उद्देश्य दोनों देशों के बीच हवाई परिवहन को संतुलित रखना है, जिससे यात्री और व्यापारिक गतिविधियां सहज रूप से संचालित हो सकें।
- इस समझौते में सीटों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। एयरलाइंस चाहे जितनी सीटों पर यात्रियों को बुक कर सकती हैं, जब तक उड़ानों की संख्या समझौते के भीतर है।
- इस व्यवस्था से एयरलाइनों को वाणिज्यिक संचालन में अधिक स्वतंत्रता मिलती है। इससे प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती है और यात्रियों को अधिक विकल्प मिलते हैं।
- इस समझौते के माध्यम से दोनों देशों ने एयरलाइनों को व्यावसायिक साझेदारी के लिए एक प्लेटफॉर्म दिया है।
- भारत की इंडिगो और तुर्की की तुर्की एयरलाइंस ने इसका लाभ उठाकर कोडशेयर और डैम्प लीज जैसे मॉडल अपनाए।
वायु परिवहन समझौता (हवाई सेवा समझौता) क्या हैं?
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- परिचय:
- वायु परिवहन समझौता (Air Transport Agreement), जिसे कभी-कभी हवाई सेवा समझौता (Air Services Agreement) या ATA/ASA भी कहा जाता है, दो देशों के बीच एक द्विपक्षीय समझौता होता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक हवाई सेवाओं की अनुमति देना होता है। ऐसे समझौतों के बिना, कोई भी एयरलाइन दूसरे देश में अपनी सेवाएं शुरू नहीं कर सकती।
- यह समझौता एयरलाइनों को तय मार्गों पर उड़ान भरने, यात्री और माल ले जाने, और अन्य आर्थिक और परिचालन अधिकार प्रदान करता है।
- सभी एटीए और एएसए समझौतों को ICAO के डेटाबेस DAGMAR में पंजीकृत किया जाना चाहिए।
- वास्तविकता में यह पंजीकरण पूर्ण रूप से अद्यतन और सार्वभौमिक नहीं होता, क्योंकि कई सरकारें इन समझौतों को गोपनीय रखने का प्रयास करती हैं।
- परिचय:
- पृष्ठभूमि:
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- वायु परिवहन समझौतों की वैधानिक नींव 1944 में हुए शिकागो कन्वेंशन में रखी गई थी। यह कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) की स्थापना का आधार बना।
- इसमें विमानन से जुड़े सुरक्षा, उड़ान योग्यता, पर्यावरण संरक्षण, और हवाई अड्डों की सुविधाओं से जुड़े कई अनुलग्नक (Annexes) शामिल हैं।
- ऐसा समझौता सबसे पहले 1913 में फ्रांस और जर्मनी के बीच हुआ था, जिसमें हवाई पोत सेवाओं को संचालित करने की अनुमति दी गई थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, वायु परिवहन समझौतों को औपचारिक रूप देने की आवश्यकता महसूस हुई।
- इसी क्रम में 1946 में ब्रिटेन और अमेरिका के बीच बरमूडा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
- इस समझौते के तहत मार्ग, किराया, और संचालन से जुड़ी कई प्रमुख नीतियों को लागू किया गया।
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- अधिकार:
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- आवृत्ति (Frequency): कितनी बार उड़ान भरी जा सकती है।
- नामित एयरलाइंस (Designated Airlines): कौन-सी एयरलाइनें सेवाएं दे सकती हैं।
- मूल, मध्यवर्ती और गंतव्य बिंदु (Origin, Intermediate, Destination Points)।
- यातायात अधिकार (Traffic Rights): यात्रियों और माल को एक देश से दूसरे देश में ले जाने की अनुमति।
- विमान का प्रकार: कौन से विमान इस मार्ग पर उड़ान भर सकते हैं।
- कर और शुल्क संबंधी प्रावधान।
भारत के द्विपक्षीय हवाई सेवा समझौते
- भारत ने कुल 116 देशों के साथ द्विपक्षीय वायु सेवा समझौते (Air Service Agreements – ASA) पर हस्ताक्षर किए हैं।
- इन समझौतों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवाओं का संचालन सुलभ हुआ है।
- इसका उद्देश्य भारत और अन्य देशों के बीच हवाई संपर्क, व्यापार, पर्यटन तथा राजनयिक संबंधों को मज़बूत बनाना है।
- भारत ने सभी समझौतों में यह नीति अपनाई है कि विदेशी एयरलाइन भारत के किसी भी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भर सकती है, लेकिन यह तभी संभव है जब वह स्थान संविदा में कॉल पॉइंट (Call Point) के रूप में दर्ज हो।
- भारत द्वारा नए गैर-मेट्रो हवाई अड्डों को कॉल पॉइंट बनाने में फिलहाल संयम बरता जा रहा है, ताकि भारतीय एयरलाइनों के पक्ष में संतुलन बना रहे।
- इन समझौतों के तहत भारत की ओर से नामित एयरलाइंस जैसे एयर इंडिया, इंडिगो, विस्तारा आदि को यह अधिकार प्राप्त है कि वे भारत के किसी भी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ानें शुरू कर सकती हैं। उन्हें इसके लिए अलग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती हैं।
- भारत के ASA जिन देशों से हुए हैं, उनमें प्रमुख विकसित देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान के साथ-साथ उभरते राष्ट्र जैसे बांग्लादेश, श्रीलंका, ब्राज़ील, केन्या, वियतनाम आदि शामिल हैं।
- भारत ने अपनी राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति 2016 के तहत ओपन स्काई व्यवस्था को भी अपनाया है।
- यह नीति विमानन क्षेत्र में एक मुक्त और खुला बाजार स्थापित करने का प्रयास है। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को सरल बनाकर भारत को ग्लोबल एयर ट्रैफिक का हब बनाना है।
- ओपन स्काई नीति से उड़ान सेवाओं में विकास, प्रतिस्पर्धा, और सुविधा बढ़ाने की योजना है।
- ओपन स्काई व्यवस्था के तहत भारत के छह प्रमुख मेट्रो हवाई अड्डों—दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, और बेंगलुरु—से विशेष सुविधाएं प्रदान की गई हैं। इन हवाई अड्डों से, पारंपरिक द्विपक्षीय अधिकारों के अलावा, असीमित उड़ानों की अनुमति दी जाती है।
- 2022 में, भारत ने इस ओपन स्काई नीति के तहत दो नए देशों के साथ समझौते किए—मालदीव और कनाडा। इसके बाद, 2023 में न्यूजीलैंड के साथ भी यह व्यवस्था शुरू की गई।
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA)
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