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कांगो-रवांडा शांति समझौता (Congo–Rwanda Peace Agreement) | Apni Pathshala

Congo–Rwanda Peace Agreement

Congo–Rwanda Peace Agreement

संदर्भ:

रवांडा और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) ने अमेरिका की मध्यस्थता में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते का उद्देश्य वर्षों से जारी उस संघर्ष को समाप्त करना है, जिसमें हजारों लोगों की जान गई और लाखों लोग विस्थापन का शिकार हुए हैं।

(Congo–Rwanda Peace Agreement) कांगोरवांडा शांति समझौते की मुख्य बातें
  1. शांति समझौता: समझौते के तहत रवांडा की सेनाओं को पूर्वी कांगो से 90 दिनों के भीतर हटाना होगा।
  2. आर्थिक सहयोग:
  • दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण ढाँचे (Regional Economic Integration Framework) की स्थापना की जाएगी।
  • यह ढाँचा व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने पर केंद्रित रहेगा।
  • कोबाल्ट, कॉपर और सोने जैसी खनिज आपूर्ति श्रृंखलाएं सहयोग का केंद्र होंगी।
  1. सुरक्षा प्रावधान:
  • दोनों देशों द्वारा 30 दिनों के भीतर एक संयुक्त सुरक्षा समन्वय तंत्र स्थापित किया जाएगा।
  • यह तंत्र विशेष रूप से FDLR (Democratic Forces for the Liberation of Rwanda) जैसे सशस्त्र समूहों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  1. अंतरराष्ट्रीय समर्थन: दोहा में मध्यस्थता वार्ताएँ चल रही हैं जो कांगो में M23 विद्रोहियों के समाधान और समझौते के तहत तय आर्थिक ढाँचे को आगे बढ़ाने के लिए अहम हैं।

कांगोरवांडा संघर्ष की पृष्ठभूमि:

  1. 1994 रवांडा नरसंहार की उत्पत्ति:
  • 800,000 से अधिक तुत्सी और उदारवादी हुतू नागरिकों की हत्या चरमपंथी हुतू बलों द्वारा की गई।
  • नरसंहार के बाद FDLR जैसे हुतू मिलिशिया कांगो (तत्कालीन ज़ैरे) में भाग गए, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता की नींव पड़ी।
  1. शरणार्थी संकट और उग्रवादी उपस्थिति:
  • हथियारबंद हुतू शरणार्थी पूर्वी कांगो में बस गए, जो रवांडा की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा बन गए।
  • रवांडा ने कांगो सरकार पर इन मिलिशिया को संरक्षण देने का आरोप लगाया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा गया।
  1. पहला कांगो युद्ध (1996–1997):
  • रवांडा ने 1996 में सैन्य हस्तक्षेप किया और लॉरेंट-देशीरे कबीला का समर्थन किया, जिन्होंने मोबुतु सेसे सेको को सत्ता से हटाया।
  • यह हस्तक्षेप पहले कांगो युद्ध में बदल गया, जो 1997 में समाप्त हुआ लेकिन आगामी संघर्षों का आधार बना।

 

 

  1. दूसरा कांगो युद्ध (1998–2003):
  • मोबुतु के पतन के बाद शुरू हुआ दूसरा कांगो युद्ध — अफ्रीका के कई देशों की भागीदारी के कारण इसे “अफ्रीका का विश्व युद्ध” कहा जाता है।
  • रवांडा और युगांडा ने पूर्वी कांगो में विद्रोही गुटों को समर्थन दिया, जबकि कांगो सरकार को अंगोला, जिम्बाब्वे आदि का समर्थन मिला।
  • इस युद्ध में लाखों लोगों की मृत्यु हुई और क्षेत्र में मानवीय संकट गहरा गया।
  1. M23 विद्रोह (2012):
  • M23 विद्रोही समूह की स्थापना पूर्वी कांगो में हुई, जिसमें अधिकतर सदस्य CNDP (रवांडा समर्थित पूर्व सैन्य गुट) से थे।
  • M23 ने गोमा जैसे रणनीतिक शहरों और खनिज-समृद्ध क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे भीषण हिंसा और विस्थापन हुआ।

आगामी चुनौतियाँ:

  • समझौते का पालन अनिवार्य: दोनों देशों को समझौते की सभी शर्तों का ईमानदारी से पालन करना होगा, तभी शांति बहाल हो सकेगी।
  • दोहा वार्ताएँ महत्वपूर्ण: कांगो सरकार और M23 विद्रोहियों के बीच चल रही दोहा की मध्यस्थता वार्ताएँ इस समझौते की सफलता के लिए केंद्रबिंदु हैं।
  • पूर्व अनुभवों से सतर्कता: विश्लेषकों ने जताई सावधानीपूर्ण आशावादिता, क्योंकि पूर्व के शांति प्रयासों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
  • स्थायी समाधान की आवश्यकता: केवल सैन्य वापसी या आर्थिक ढांचे की स्थापना नहीं,स्थायी राजनीतिक समाधान, समुदायों का पुनर्वास, और पारदर्शिता भी ज़रूरी है।

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