Supreme Court order on dowry system
संदर्भ:
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल के एक महत्वपूर्ण निर्णय में दहेज प्रथा के पूर्ण उन्मूलन को “तत्काल संवैधानिक और सामाजिक आवश्यकता” बताया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दहेज जैसी कुप्रथा विवाह संस्था की पवित्रता को नष्ट करती है और संविधान में निहित समानता तथा गरिमामय जीवन के अधिकार के प्रतिकूल है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां:
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संविधानिक मूल्यों का उल्लंघन: दहेज प्रथा अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन का अधिकार) का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह प्रथा संरचनात्मक लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देती है। यह न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक आदर्शों के विपरीत है।
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सामाजिक ताने-बाने पर प्रभाव: न्यायालय ने चिंता व्यक्त की कि दहेज ने विवाह को विश्वास और सम्मान आधारित सामाजिक संस्था के बजाय व्यावसायिक लेन-देन में बदल दिया है। इससे पारिवारिक संबंधों में हिंसा, उत्पीड़न और असमानता को बढ़ावा मिलता है, जिसका सबसे गंभीर रूप दहेज मृत्यु के मामलों में दिखाई देता है।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्देश:
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दहेज निषेध अधिकारियों की नियुक्ति: सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि दहेज निषेध अधिकारी सक्रिय रूप से नियुक्त हों। उन्हें पर्याप्त संसाधन दिए जाएं और उनके संपर्क विवरण सार्वजनिक किए जाएं, ताकि पीड़ित महिलाएं आसानी से सहायता प्राप्त कर सकें।
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लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा: न्यायालय ने उच्च न्यायालयों से कहा कि वे धारा 304-बी (दहेज मृत्यु) और धारा 498-ए (क्रूरता) से जुड़े मामलों की संख्या की समीक्षा करें और उनके त्वरित निपटारे के लिए प्रभावी कदम उठाएं।
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पुलिस और न्यायिक अधिकारियों का प्रशिक्षण: पुलिस व न्यायिक अधिकारियों को नियमित संवेदनशीलता प्रशिक्षण देने का निर्देश दिया गया है, ताकि वे दहेज मामलों के सामाजिक और मानसिक पहलुओं को समझ सकें और वास्तविक मामलों की सही पहचान कर सकें।
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शिक्षा पाठ्यक्रम में सुधार: केंद्र और राज्य सरकारों को शिक्षा पाठ्यक्रम में ऐसे विषय शामिल करने को कहा गया है, जो विवाह में समानता और गरिमा के संवैधानिक सिद्धांतों को मजबूत करें और दहेज के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करें।
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जन-जागरूकता कार्यक्रम: न्यायालय ने जिला प्रशासन और कानूनी सेवा प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे नागरिक समाज के सहयोग से नियमित जागरूकता अभियान चलाएं, जिससे समाज में दहेज प्रथा के प्रति व्यवहारिक बदलाव आ सके।
कानूनी ढांचा और चुनौतियाँ:
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कानून के बावजूद निरंतरता: भारत में दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961, आईपीसी की धारा 498-ए (क्रूरता) और 304-बी (दहेज मृत्यु) जैसे सख्त कानून मौजूद हैं। इसके बावजूद दहेज आज भी उपहार, सामाजिक अपेक्षा या परंपरा के रूप में प्रचलित है।
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2023 में दहेज से संबंधित अपराधों में लगभग 14 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें 6,100 से अधिक दहेज मृत्यु के मामले सामने आए। यह कानून और उसके क्रियान्वयन के बीच की खाई को दर्शाता है।
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गहरी सामाजिक जड़ें: दहेज प्रथा की सबसे बड़ी चुनौती पितृसत्तात्मक मानसिकता और महिलाओं को आर्थिक बोझ मानने की सोच है।
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कम दोषसिद्धि दर, सामाजिक दबाव के कारण मामलों का दर्ज न होना, तथा उपभोक्तावाद और भौतिक लालसा इस समस्या को और जटिल बनाते हैं।

