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हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि केवल 16% कार्बन क्रेडिट ही वास्तविक उत्सर्जन में कमी लाते हैं। यह खुलासा कार्बन बाज़ारों की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। ऐसे समय में जब COP29 में नए कार्बन व्यापार तंत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है, यह अध्ययन उत्सर्जन में कमी के दावों की सटीकता पर पुनर्विचार की आवश्यकता दर्शाता है।
अध्ययन की मुख्य खोज और समाधान सुझाव
- कार्बन क्रेडिट की प्रभावशीलता पर सवाल
- क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के तहत उत्पन्न एक अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बराबर कार्बन क्रेडिट में से केवल 16% क्रेडिट वास्तविक उत्सर्जन में कमी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- HFC-23 परियोजनाओं की सफलता
- हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC)-23, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, के उन्मूलन पर केंद्रित परियोजनाएँ सबसे प्रभावी रहीं। इनसे उत्पन्न 68% क्रेडिट ने उत्सर्जन में वास्तविक कटौती की।
- अन्य परियोजनाओं की सीमाएँ
- वनों की कटाई से बचाव परियोजनाएँ केवल 25% प्रभावशीलता दिखा पाईं, जबकि सौर कुकर परिनियोजन परियोजनाएँ महज़ 11% क्रेडिट की वास्तविक उत्सर्जन कटौती में सहायक रहीं।
- “अतिरिक्तता” नियम का उल्लंघन
- अध्ययन में पाया गया कि कई परियोजनाएँ “अतिरिक्तता” (additionality) के मानक पर खरी नहीं उतरीं। इसका अर्थ है कि उत्सर्जन में कमी कार्बन क्रेडिट के बिना भी संभव थी, जिससे दावा कमजोर हो गया।
- पेरिस समझौते के तहत नई दिशा
- पेरिस समझौते, 2015 के तहत अधिक सख्त और मज़बूत कार्बन व्यापार तंत्र की आवश्यकता है। इसे सुनिश्चित करना होगा कि क्रेडिट केवल वास्तविक उत्सर्जन कटौती का प्रतिनिधित्व करें।
- सिफारिशें और सुधार के उपाय
- सख्त पात्रता मानदंड: उत्सर्जन में वास्तविक कमी को मापने के लिये सटीक मानकों और पद्धतियों की आवश्यकता।
- अतिरिक्तता आधारित परियोजनाओं को प्राथमिकता: जिन परियोजनाओं में कार्बन क्रेडिट के बिना उत्सर्जन कटौती संभव न हो, उन्हें बढ़ावा देना।
- COP29 में प्रगति की उम्मीद: यह सम्मेलन कार्बन बाज़ारों की पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये नए तंत्र लागू करने का अवसर प्रदान करता है।
कार्बन क्रेडिट: कार्बन क्रेडिट एक ऐसा प्रमाणपत्र है जो धारक को एक टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) या उसके समकक्ष ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जित करने का अधिकार देता है। यह तंत्र पर्यावरण संरक्षण और उत्सर्जन में कमी को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया है।
कार्बन क्रेडिट कैसे बनते हैं?
कार्बन क्रेडिट उन गतिविधियों या परियोजनाओं से उत्पन्न होते हैं जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या वायुमंडल से हटाने में सहायक होती हैं, जैसे:
- नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं: सौर और पवन ऊर्जा।
- ऊर्जा दक्षता: ऊर्जा खपत को कम करने वाले उपाय।
- वनरोपण: वनों का पुनर्विकास।
- मीथेन संग्रहण: लैंडफिल और औद्योगिक स्थलों से।
कार्बन क्रेडिट के लाभ
- पर्यावरण संरक्षण: स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और सतत प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
- आर्थिक प्रोत्साहन: नवाचार और उत्सर्जन कम करने वाली परियोजनाओं को लाभ मिलता है।
- लचीलापन: कंपनियों को लागत प्रभावी तरीके से उत्सर्जन सीमा का पालन करने का विकल्प।
- वैश्विक सहयोग: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन।
चुनौतियां और आलोचनाएं
- सत्यापन जटिलता: क्रेडिट की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है।
- बाजार की अस्थिरता: कीमतों में उतार-चढ़ाव स्थिरता को प्रभावित करता है।
- ग्रीनवाशिंग: कंपनियां बिना ठोस बदलाव किए केवल छवि सुधार के लिए क्रेडिट का उपयोग कर सकती हैं।
- असमानता: विकासशील देशों को संसाधनों तक पहुंचने में कठिनाई होती है।
भारत में कार्बन क्रेडिट का महत्व
- नवीकरणीय ऊर्जा: सौर, पवन और जलविद्युत परियोजनाएं क्रेडिट उत्पन्न करती हैं।
- वनरोपण: राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम उत्सर्जन में कमी लाता है।
- निर्यात अवसर: भारतीय कंपनियां अधिशेष क्रेडिट बेचकर राजस्व अर्जित कर सकती हैं।
सरकारी पहल: प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना जैसी नीतियां ऊर्जा दक्षता और कार्बन क्रेडिट सृजन को बढ़ावा देती हैं।
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