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संदर्भ:
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने ओडिशा के जाजपुर जिले में स्थित ऐतिहासिक रत्नागिरी बौद्ध स्थल पर चल रही खुदाई के दौरान महत्वपूर्ण खोजें की हैं। ये खोजें प्राचीन बौद्ध सभ्यता और इस क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को समझने में एक नई दिशा प्रदान कर रही हैं।
रत्नागिरी बौद्ध स्थल की प्रमुख खोजें:
- प्रमुख उत्खनन निष्कर्ष:
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 5वीं-13वीं शताब्दी के बौद्ध स्थल रत्नागिरी में चल रही खुदाई में कई प्राचीन बौद्ध अवशेष मिले हैं, जिनमें शामिल हैं:
- बौद्ध मठ परिसर, जो 8वीं शताब्दी ईस्वी का बताया जा रहा है।
- विशाल बुद्ध सिर और बौद्ध देवताओं की मूर्तियों के खंडित अवशेष, जिसमें एक 5 फीट लंबी हथेली भी मिली है।
- बुद्ध का सिर लगभग 3-4 फीट ऊँचा है।
- शिलालेख युक्त पत्थर, मिट्टी के बर्तन, मनके, पत्थर के स्तंभ आदि।
- एक प्राचीन ईंट की दीवार, जो एक बड़े ढांचे का हिस्सा मानी जा रही है।
- 5 फीट लंबा और 3.5 फीट ऊँचा एक अखंड पत्थर का हाथी।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 5वीं-13वीं शताब्दी के बौद्ध स्थल रत्नागिरी में चल रही खुदाई में कई प्राचीन बौद्ध अवशेष मिले हैं, जिनमें शामिल हैं:
- महत्व:
- इन खोजों ने रत्नागिरी की 1,200 वर्षों की समृद्ध विरासत को और मजबूती दी है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि रत्नागिरी, बिहार स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के समकक्ष एक प्रमुख बौद्ध शिक्षण केंद्र रहा होगा।
- यह उत्खनन ओडिशा में बौद्ध धर्म के विकास और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ इसके संबंधों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
पिछली खुदाई:
- पिछली प्रमुख खुदाई:
- रत्नागिरी में अंतिम प्रमुख खुदाई 1958 से 1961 के बीच देबाला मित्रा द्वारा की गई थी।
- इस खुदाई में ईंटों का स्तूप, मठ परिसर, और कई वोटिव स्तूप (धार्मिक प्रतिमाएँ) पाए गए थे।
- इतिहासिक संदर्भ की समझ: इन पहले के प्रयासों ने रत्नागिरी स्थल के ऐतिहासिक संदर्भ को समझने के लिए महत्वपूर्ण आधार तैयार किया, जो आज की खुदाई में मिली नई जानकारी के साथ जुड़ा है।
रत्नागिरी और बौद्ध धर्म का इतिहास:
- रत्नागिरी का विकास:
- रत्नागिरी का उत्कर्ष 5वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ, जिसमें 7वीं से 10वीं शताब्दी के दौरान इसका निर्माण चरम पर था।
- यह महायान और तंत्रयान (वज्रयान) बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था।
- ओडिशा में बौद्ध धर्म का उदय:
- ओडिशा में बौद्ध धर्म ने मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल में कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद प्रमुखता हासिल की।
- रत्नागिरी स्थल शायद दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार का एक केन्द्र रहा था, जिसे ओडिशा के प्राचीन समुद्री व्यापार संपर्कों से समर्थन प्राप्त था।
रत्नागिरी का महत्व:
- ऐतिहासिक महत्व: रत्नागिरी ने नालंदा के समान बौद्ध शिक्षा केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई थी।
- संस्कृतिक धरोहर: रत्नागिरी में वोटिव स्तूप, मठ, और धार्मिक अवशेष पाए गए, जो बौद्ध कला और वास्तुकला के विकास को प्रदर्शित करते हैं।
- वैश्विक संबंध: इस स्थल से जुड़ी व्यापार और धार्मिक आदान-प्रदान के प्रमाण मिलते हैं, जो इसे दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ घनिष्ठ संबंधों का प्रतीक बनाते हैं।
- शैक्षिक केंद्र: रत्नागिरी संभवतः चीनी भिक्षु हियुएन त्सांग द्वारा 638-639 ईस्वी में यात्रा की गई थी।
- समुद्री धरोहर: रत्नागिरी ओडिशा के बलीयात्रा का हिस्सा था, जो जावा, सुमात्रा और बाली जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संपर्कों का उत्सव मनाता था।