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भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR ) को सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण में सुधार का एक प्रभावी साधन माना गया है, जिससे कृषि क्षेत्र में कई संभावनाएं उत्पन्न होती हैं। कृषि में सीएसआर योगदान से किसानों की आजीविका में सुधार लाया जा सकता है, जलवायु अनुकूलता बढ़ाई जा सकती है और सतत कृषि प्रथाओं को अपनाने के प्रयासों को समर्थन दिया जा सकता है। राष्ट्रीय कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पोर्टल के अनुसार , 2014 से 2023 तक ₹1.84 लाख करोड़ सीएसआर फंड वितरित किए गए।
राष्ट्रीय कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR ):
राष्ट्रीय कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) डेटा पोर्टल भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) से संबंधित जानकारी का प्रमुख स्रोत है। इसे कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य पंजीकृत कंपनियों द्वारा प्रस्तुत सीएसआर डेटा को पारदर्शिता के साथ प्रसारित करना है। यह पोर्टल कंपनियों द्वारा किए गए सीएसआर प्रयासों की जानकारी साझा करता है, जिससे उनके कार्यान्वयन और प्रभाव की निगरानी की जा सके।
कृषि क्षेत्र में सीएसआर योगदान का महत्व:
भारत में कृषि क्षेत्र न केवल रोजगार का प्रमुख स्रोत है, बल्कि आर्थिक विकास में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है। परंतु, यह क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है जैसे जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, और किसानों की स्थिर आय। सीएसआर के माध्यम से कृषि में निवेश इन चुनौतियों का समाधान कर सकता है, जैसे:
- जल संरक्षण: सीएसआर निधियों का उपयोग तालाबों, झीलों, और नहरों के पुनरुद्धार में किया जा सकता है, जो किसानों को जल संकट से निपटने में सहायता करता है।
- ऊर्जा-कुशल सिंचाई: ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी ऊर्जा-कुशल सिंचाई तकनीकों में सीएसआर निवेश से किसानों के लिए पानी और ऊर्जा की खपत कम हो सकती है।
- किसान प्रशिक्षण: किसान स्कूलों और कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को बेहतर खेती के तरीकों, जैविक खेती, और नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग की जानकारी मिल सकती है।
- जलवायु अनुकूलता: सीएसआर निधियों से जलवायु-स्थिरता और अनुकूलता परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है, जैसे अधिक सहनशील बीजों का वितरण और जलवायु-लचीली कृषि प्रथाओं का प्रशिक्षण।
कृषि में सीएसआर योगदान की मुख्य चुनौतियाँ:
हालाँकि, कृषि क्षेत्र में सीएसआर प्रयासों को लक्षित करने में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं:
- अस्पष्ट रिपोर्टिंग ढांचा: वर्तमान में सीएसआर परियोजनाओं की रिपोर्टिंग में कृषि को एक अलग श्रेणी के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया है, जिससे कृषि पर लक्षित सीएसआर खर्च का सटीक विश्लेषण करना कठिन हो जाता है।
- संगठनों में जागरूकता की कमी: कई कंपनियों में कृषि से जुड़े मुद्दों की पहचान और उनके लिए विशेष सीएसआर परियोजनाएँ विकसित करने की जागरूकता सीमित है।
- सीमित वर्गीकरण: कंपनी अधिनियम की अनुसूची VII में सूचीबद्ध 11 क्षेत्रों के अंतर्गत कृषि स्थिरता से संबंधित सीएसआर गतिविधियाँ आ सकती हैं। परंतु, ये श्रेणियाँ व्यापक हैं, जो कृषि-विशिष्ट योगदान को ट्रैक करने में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
कृषि में सीएसआर योगदान बढ़ाने की सिफारिशें:
- विशेष रिपोर्टिंग ढांचा: कृषि के लिए एक विशिष्ट सीएसआर रिपोर्टिंग ढांचा विकसित किया जाना चाहिए। यह ढांचा सीएसआर योगदान को प्रभावी रूप से ट्रैक करने में मदद करेगा और इसे कृषि क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुकूल बनाएगा।
- कृषि को अलग क्षेत्र के रूप में परिभाषित करना: कृषि के लिए सीएसआर योगदान को एक अलग श्रेणी के रूप में नामित करने से कंपनियाँ स्पष्ट रूप से लक्षित निवेश कर सकेंगी। इससे पारदर्शिता, मूल्यांकन, और प्रभावी प्रबंधन में सुधार आएगा।
- सहयोग और साझेदारी: सरकारी और निजी संगठनों के बीच साझेदारी स्थापित करना, जो कृषि क्षेत्र की जरूरतों के लिए अनुकूलित सीएसआर पहल का मार्गदर्शन कर सके, विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
भारत में सीएसआर की रूपरेखा:भारत में सीएसआर की अवधारणा को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135, अधिनियम की अनुसूची VII, और कंपनी (सीएसआर नीति) नियम, 2014 के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। यह कानून उन कंपनियों पर लागू होता है जो किसी विशेष आय, लाभ, या शुद्ध संपत्ति की सीमा को पार करती हैं। इसमें निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया गया है:
सीएसआर का उद्देश्य:भारत में सीएसआर का बढ़ता दायरा यह दर्शाता है कि कंपनियाँ केवल मुनाफे के लिए काम करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि राष्ट्र निर्माण और स्थिरता लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सीएसआर नीतियों के माध्यम से कंपनियाँ न केवल अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर रही हैं, बल्कि:
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इन उपायों के माध्यम से, सीएसआर योगदान न केवल भारतीय कृषि को सशक्त कर सकता है, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे भारत के समग्र आर्थिक और सामाजिक कल्याण में योगदान किया जा सके।
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