संदर्भ:
उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने राजनीति में “मुफ्त योजनाओं” (फ्रीबीज) की संस्कृति की आलोचना करते हुए इस मुद्दे पर संसद में विस्तृत बहस की आवश्यकता पर जोर दिया।
फ्रीबीज (Freebies) के बारे में:
- अर्थ: फ्रीबीज का शाब्दिक अर्थ है ऐसी चीजें जो मुफ्त में दी जाती हैं। लेकिन व्यवहार में फ्रीबीज की कोई सटीक परिभाषा नहीं है।
- फ्रीबीज के उदाहरण:
- राज्य या केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सेवाएं या सुविधाएं, जैसे:
- मुफ्त बिजली, पानी और सार्वजनिक परिवहन।
- बकाया बिलों की माफी।
- कृषि ऋण माफी।
- राज्य या केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सेवाएं या सुविधाएं, जैसे:
फ्रीबीज और पब्लिक–मेरिट गुड्स में अंतर: फ्रीबीज को उन सार्वजनिक कल्याण योजनाओं से अलग समझना चाहिए, जिनका आर्थिक लाभ होता है, जैसे:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)।
- रोजगार गारंटी योजनाएं।
- शिक्षा और स्वास्थ्य में सरकारी सहायता।
चुनौतियाँ और चिंताएँ (Challenges and Concerns)
- राज्य बजट पर दबाव: फ्रीबीज देने से राज्य के बजट पर भारी दबाव पड़ता है, जिससे वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit) और सार्वजनिक ऋण (Public Debt) बढ़ता है, जो दीर्घकालिक आर्थिक समस्याओं का कारण बनता है।
- महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रभाव: फ्रीबीज पर खर्च करने से बुनियादी ढाँचे (Infrastructure), शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए धन की कमी हो जाती है, जिससे विकास में बाधा आती है।
- निर्भरता और संसाधनों का दुरुपयोग: फ्रीबीज देने से संसाधनों का अप्रभावी उपयोग होता है और लोगों में निर्भरता (Dependency) की भावना पैदा होती है, जो गरीबी के मूल कारणों का समाधान नहीं करता।
- प्रतिस्पर्धात्मक लोकलुभावनवाद (Competitive Populism): राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज देने की होड़ नीति की प्रभावशीलता को कम करती है और दीर्घकालिक विकास की जगह अल्पकालिक लाभ पर जोर देती है।
- आवश्यक नीतिगत सुधारों की अनदेखी: फ्रीबीज पर ध्यान देने से कौशल विकास, शिक्षा और रोजगार सृजन में सुधार जैसे आवश्यक नीतिगत सुधारों उपेक्षा होती है।
- संविधान का प्रावधान: संविधान का अनुच्छेद 38 राज्य को कल्याण को बढ़ावा देने और असमानताओं को कम करने का निर्देश देता है, लेकिन फ्रीबीज देने से राज्य के वित्त पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
फ्रीबीज को प्रबंधित करने के प्रस्तावित समाधान (Proposed Solutions for Managing Freebies)
- सरकारी खर्च पर राष्ट्रीय नीति:
- एक स्पष्ट ढांचा होना चाहिए जो यह परिभाषित करे कि कौन सी कल्याणकारी योजनाएँ आवश्यक सब्सिडी (Subsidies) हैं और कौन सी राजनीतिक लाभ के लिए दी जा रही फ्रीबीज हैं।
- संसदीय निगरानी (Parliamentary Oversight) से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि आर्थिक नीतियाँ सामाजिक कल्याण और वित्तीय जिम्मेदारी में संतुलन बनाए रखें।
- कल्याणकारी योजनाओं के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण:
- बिचौलियों को हटाना और सब्सिडी के लिए DBT का उपयोग करना लीकेज और भ्रष्टाचार को कम कर सकता है।
- जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी ने पहले ही लाभ अंतरण की प्रक्रिया को सरल बना दिया है। सभी प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं में DBT को लागू करना प्रभावशीलता और जवाबदेही को सुधार सकता है।
- प्रदर्शन–आधारित कल्याणकारी कार्यक्रम: लाभों को रोजगार सृजन, कौशल विकास या सामुदायिक सेवा से जोड़ने से योजनाएँ आत्मनिर्भर बन सकती हैं।
- चुनावी वादों को नियंत्रित करना: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को ऐसे दिशानिर्देश बनाने चाहिए जो:
- पार्टियों को चुनाव से पहले फ्रीबीज के वित्तीय प्रभाव को बताने के लिए बाध्य करें।
- यह सुनिश्चित करें कि घोषणा पत्र में किए गए वादे राजस्व उत्पन्न करने की योजनाओं के आधार पर हों।
- संसदीय स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (MPLAD) प्रणाली का सुधार:
- MPLAD फंड्स को बढ़ाने से स्थानीय विकास में सुधार हो सकता है, लेकिन यह होना चाहिए:
- पारदर्शिता और प्रभावशीलता के लिए मॉनिटर किया जाए।
- अल्पकालिक राजनीतिक लाभ की बजाय दीर्घकालिक परियोजनाओं से जोड़ा जाए।