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भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता

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संदर्भ:

भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता: भारत और न्यूजीलैंड ने प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर फिर से बातचीत शुरू करने की घोषणा की, जिसे 2015 में रोक दिया गया था। दोनों देशों ने अप्रैल 2010 में व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर वार्ता शुरू की थी, लेकिन 9 दौर की चर्चा के बाद यह वार्ता ठप हो गई थी। अब, व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसे फिर से शुरू किया जा रहा है।

भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता शुरू करने का उद्देश्य:

  1. बाजार पहुँच और व्यापार वृद्धि को बढ़ावा देना:
    • उद्देश्य: टैरिफ और व्यापार अवरोधों को कम करके व्यापार के अवसरों का विस्तार करना।
    • उदाहरण: द्विपक्षीय व्यापार अप्रैल-जनवरी 2025 के दौरान 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जो आगे की वृद्धि की संभावनाओं को दर्शाता है।
  2. सप्लाई चेन एकीकरण को मजबूत करना: दोनों देशों के बीच लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन की कार्यक्षमता को सुधारना।
  3. निवेश और व्यवसाय के अवसरों को बढ़ावा देना:  IT, सेवाओं और कृषि जैसे क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करना और रोजगार के अवसर पैदा करना।

भारत-न्यूजीलैंड व्यापार वार्ता 2015 में क्यों रुकी थी?

  1. डेयरी बाजार में पहुँच को लेकर मतभेद:
    • न्यूज़ीलैंड ने भारत के डेयरी बाजार में अधिक पहुंच की मांग की, लेकिन भारत ने अपने लाखों डेयरी किसानों की सुरक्षा के लिए इसका विरोध किया।
    • उदाहरण: न्यूज़ीलैंड से भारत का डेयरी आयात लगभग $0.57 मिलियन था, और भारत कच्चे डेयरी आयात की अनुमति देने के खिलाफ था।
  2. टैरिफ में कटौती की चुनौती: न्यूज़ीलैंड का औसत टैरिफ केवल 3% था, जबकि भारत का औसत टैरिफ 17.8% था, जिससे टैरिफ में कटौती करना मुश्किल हो गया।
  3. भारत के लिए वस्त्र व्यापार में सीमित लाभ: न्यूज़ीलैंड के कम टैरिफ और कई उत्पादों पर ड्यूटी-फ्री पहुँच ने भारत के लिए कम लाभदायक स्थिति उत्पन्न की।
  4. कुशल श्रमिकों की आवाजाही पर चिंता: भारत IT और सेवाओं में कुशल पेशेवरों की आवाजाही में आसानी चाहता था, लेकिन न्यूज़ीलैंड ने इसका विरोध किया।
  5. बाहरी व्यापार दबाव: भारत पर अमेरिका जैसे देशों का दबाव था कि वह अपने डेयरी और कृषि क्षेत्रों को खोले, जिससे बातचीत में जटिलता आई।

भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच टैरिफ असमानता से बातचीत में क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?

  1. औसत टैरिफ दरों में बड़ा अंतर:
    • न्यूज़ीलैंड का औसत आयात टैरिफ: 3% (जिसमें से आधे से अधिक टैरिफ लाइनें ड्यूटी-फ्री हैं)।
    • भारत का औसत टैरिफ: 8%।
    • भारतीय उत्पाद पहले से ही न्यूज़ीलैंड के बाजार में अच्छी पहुँच रखते हैं, जिससे FTA भारत के लिए कम लाभदायक है।
  2. भारत के लिए सीमित बाजार लाभ:
    • न्यूज़ीलैंड के कई उत्पादों पर कम या कोई टैरिफ न होने से भारतीय निर्यातकों के लिए नए अवसर सीमित हैं।
    • वस्त्र, फार्मास्युटिकल और ऑटो कंपोनेंट जैसे क्षेत्रों में पहले से ही न्यूनतम प्रतिबंध हैं।
  3. संवेदनशील क्षेत्रों पर टैरिफ में कटौती का दबाव: न्यूज़ीलैंड अपने डेयरी, मांस और वाइन के निर्यात पर टैरिफ में कटौती चाहता है, लेकिन भारत अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा कर रहा है।
  4. पारस्परिक रियायतों में असंतुलन: यदि भारत अपने टैरिफ में काफी कटौती करता है, तो न्यूज़ीलैंड को अधिक लाभ मिलेगा जबकि भारत की बाजार पहुँच में कोई खास बदलाव नहीं होगा।
  5. अन्य व्यापार साझेदारों के लिए संभावित मिसाल:
    • यदि भारत न्यूज़ीलैंड के लिए प्रमुख टैरिफ में कटौती करता है, तो भविष्य में अन्य देश भी इसी तरह की रियायतें मांग सकते हैं।
    • ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे देश भारत से अपने कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने की माँग कर सकते हैं।

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