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भारत में तापमान वृद्धि धीमी

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संदर्भ:

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान में वृद्धि वैश्विक औसत की तुलना में कम दर्ज की गई है।

वैश्विक तापमान वृद्धि:

  1. कुल वृद्धि: वैश्विक वार्षिक औसत तापमान 1°C बढ़ गया है, जो 1850-1900 की औसत अवधि की तुलना में है।
  2. भूमि पर तापमान वृद्धि: भूमि पर तापमान औद्योगिक क्रांति से अब तक 59°C तक बढ़ गया है।
  3. महासागर तापमान वृद्धि: महासागरों का तापमान लगभग 88°C बढ़ा है, जिससे समुद्र स्तर में वृद्धि और पारिस्थितिक बदलाव हो रहे हैं।

WMO की 2024 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में पुष्टि:

  1. ग्लोबल तापमान रिकॉर्ड:
    • 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष है।
    • 2015-2024 के बीच पिछले दस वर्ष सबसे गर्म वर्षों के रूप में दर्ज हुए।
  2. भारत में तापमान वृद्धि:
    • भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, भारत में तापमान वृद्धि वैश्विक औसत वृद्धि से कम है।
    • वैश्विक जलवायु मॉडल भारत में हो रहे बदलावों को सटीकता से नहीं दर्शाते।
  3. चिंताएं और सुधार की आवश्यकता:
    • भारत को अपनी जलवायु निगरानी और प्रभाव मूल्यांकन क्षमताओं को सुधारने की आवश्यकता है।
    • बेहतर स्थानीय जलवायु मॉडलिंग से सटीक डेटा और प्रभावी नीति निर्माण में मदद मिलेगी।

भारत में तुलनात्मक रूप से कम तापमान वृद्धि के कारण:

  1. उष्णकटिबंधीय स्थिति: भूमध्य रेखा के पास होने के कारण भारत में ध्रुवीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों की तुलना में तापमान में कम उतार-चढ़ाव होता है।
  2. एरोसोल और कण पदार्थ: भारत में एरोसोल की उच्च सांद्रता सूर्य के प्रकाश को बिखेरती है, जिससे ठंडा प्रभाव पड़ता है।
  3. मानसून का प्रभाव: भारतीय मानसून प्रणाली मौसमी वर्षा के माध्यम से सतही तापमान को संतुलित करती है।
  4. महासागर का प्रभाव: भारत के चारों ओर महासागर तापमान को नियंत्रित करते हैं और गर्मी अवशोषित करने का कार्य करते हैं।
  5. भूमि का अनुपात: वैश्विक भूमि क्षेत्रों की तुलना में भारत का भूमि क्षेत्रफल छोटा होने के कारण तापमान वृद्धि अपेक्षाकृत कम होती है।

वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने में चुनौतियाँ:

  1. बढ़ते उत्सर्जन: वैश्विक प्रयासों के बावजूद, जीवाश्म ईंधन का उपयोग और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन उच्च स्तर पर बना हुआ है।
  2. आर्थिक निर्भरता: भारत सहित कई देश ऊर्जा के लिए कोयला और तेल पर अत्यधिक निर्भर हैं।
  3. वैश्विक असमानता: जिम्मेदारियों और क्षमताओं में असमानता एकीकृत जलवायु कार्रवाई को बाधित करती है।
  4. अपर्याप्त वित्तीय सहायता: विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन और न्यूनीकरण प्रयास वित्तीय सीमाओं का सामना कर रहे हैं।
  5. जलवायु अस्वीकारिता: हित समूहों का विरोध और गलत जानकारी फैलाने वाले अभियानों से अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर प्रगति धीमी हो जाती है।

वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने के उपाय:

  1. नवीकरणीय ऊर्जा अपनाना: सौर, पवन और जल विद्युत का तेजी से उपयोग कर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना।
  2. वनीकरण: बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने की पहलें कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकती हैं और वनों की कटाई को रोक सकती हैं।
  3. जलवायु नीतियाँ: पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों को मजबूत करना और उत्सर्जन में कटौती सुनिश्चित करना।
  4. तकनीकी समाकलन: कार्बन कैप्चर, भंडारण और अन्य हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश।
  5. जन जागरूकता: जलवायु परिवर्तन के बारे में समुदायों को शिक्षित करना, ताकि जमीनी स्तर पर कार्रवाई और नीति समर्थन को बढ़ावा मिल सके।

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