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भारत की रोहिंग्या शरणार्थी नीति एक रिपोर्ट के कारण फिर से चर्चा में आ गई है, जिसमें देशभर के हिरासत केंद्रों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों की दयनीय स्थिति को उजागर किया गया है।
रोहिंग्या शरणार्थी नीति रिपोर्ट के मुख्य बिंदु (Rohingya Refugees पर रिपोर्ट):
- संयुक्त रिपोर्ट: यह रिपोर्ट The Azadi Project (एक अमेरिकी गैर-लाभकारी संस्था) और Refugees International द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन:
- रिपोर्ट में संविधान और मानवाधिकारों के “गंभीर उल्लंघन” को उजागर किया गया है।
- भारत की अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों के तहत अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असफलता की आलोचना की गई है।
- अपराध के बावजूद हिरासत:
- कई रोहिंग्या शरणार्थी अपनी सजा पूरी करने के बाद भी हिरासत में हैं।
- हिरासत में बंद व्यक्तियों, उनके परिवारों और कानूनी प्रतिनिधियों के साथ साक्षात्कार में यह खुलासा हुआ।
- दयनीय स्थिति: हिरासत केंद्रों में रोहिंग्या शरणार्थियों की जीवन स्थितियां बेहद खराब और अमानवीय हैं।
- आवश्यकता: भारत की नीति और व्यवहार में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
रोहिंग्या: एक परिचय–
पृष्ठभूमि:
- जातीय समूह: रोहिंग्या एक मुस्लिम बहुल जातीय समूह हैं जो मुख्य रूप से म्यांमार के पश्चिमी प्रांत राखाइन में रहते हैं।
- भाषा: ये बांग्ला भाषा की एक बोली बोलते हैं, जो म्यांमार की आम भाषा बर्मी से अलग है।
नागरिकता और अधिकार:
- नागरिकता से वंचित: म्यांमार सरकार रोहिंग्या को पूर्ण नागरिकता प्रदान नहीं करती है।
उन्हें औपनिवेशिक समय के प्रवासी माना जाता है, जबकि वे देश में लंबे समय से निवास कर रहे हैं। - आजीविका और अधिकारों का हनन:
- रोहिंग्या समुदाय को सरकारी सेवाओं में भागीदारी से वंचित रखा जाता है।
- राखाइन राज्य के बाहर उनकी आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध है।
रोहिंग्या शरणार्थियों से जुड़े मुद्दे:
- भारत में शरणार्थी नीति की अनुपस्थिति: भारत में कोई मानकीकृत शरणार्थी नीति नहीं है, जिसके कारण शरणार्थियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार होता है।
- मनमानी गिरफ्तारी और कैद: रोहिंग्या शरणार्थी, जो UNHCR (संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त) के तहत पंजीकृत हैं, को अन्य समूहों (जैसे तिब्बती और श्रीलंकाई शरणार्थी) के विपरीत, मनमाने तरीके से हिरासत में लिया जाता है और आपराधिक मामलों में फंसाया जाता है।
- नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 का प्रभाव: सीएए, 2019 मुसलमानों को लाभों से बाहर रखता है, जिससे रोहिंग्या जैसे समुदाय हाशिए पर चले जाते हैं।
- यह अधिनियम गैर-मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करता है, लेकिन रोहिंग्या इसके दायरे में नहीं आते।
- कानूनी प्रतिनिधित्व की कमी: धन की कमी और सिविल सोसाइटी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द किए जाने के कारण, रोहिंग्या शरणार्थियों को कानूनी सहायता प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
- दमनकारी हिरासत परिस्थितियाँ:
- हिरासत केंद्रों की स्थिति अत्यंत दयनीय है:
- भीड़भाड़ वाले और अमानवीय रहने की स्थितियाँ।
- बुनियादी सुविधाओं और सम्मानजनक जीवन स्तर का अभाव।
भारत का रुख और अंतरराष्ट्रीय दायित्व:
- भारत की स्थिति
- भारत ने 1951 शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
- विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 के तहत रोहिंग्या शरणार्थियों को “अवैध प्रवासी” माना जाता है।
- अंतरराष्ट्रीय दायित्व:
- भारत ICCPR का सदस्य है, जो नॉन-रिफाउलमेंट के सिद्धांत का पालन करने की अपेक्षा करता है।
- भारत ने बाल अधिकार सम्मेलन और नस्लीय भेदभाव उन्मूलन सम्मेलन को भी मंजूरी दी है।
- कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन इसे अनुमोदित नहीं किया है।
- 3. नॉन-रिफाउलमेंट का सिद्धांत: किसी को ऐसे स्थान पर निर्वासित करने से रोकता है, जहाँ यातना या अमानवीय व्यवहार हो सकता है।