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राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य सम्मेलन 2025

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संदर्भ:

20 जनवरी 2025 को नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य सम्मेलन 2025 का आयोजन किया गया। यह आयोजन जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoH&FW) द्वारा धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के अंतर्गत किया गया।

राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य सम्मेलन के उद्देश्य:

  1. स्वास्थ्य सेवा वितरण मॉडल पर चर्चा: जनजातीय क्षेत्रों के लिए नवोन्मेषी स्वास्थ्य सेवा मॉडल का अन्वेषण और विचार-विमर्श।
  2. नीति हस्तक्षेप और अनुसंधान के प्राथमिक क्षेत्र: नीति निर्माण और अनुसंधान के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान।
  3. सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त स्वास्थ्य रणनीतियां: स्वास्थ्य जागरूकता और सेवा उपयोग बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक रूप से अनुकूल रणनीतियों का विकास।
  4. स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त बनाना: क्षमता निर्माण, सामुदायिक भागीदारी, और निगरानी तंत्रके माध्यम से स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना।
  5. व्यापक कार्य योजना का निर्माण: जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और परिणामों को बेहतर बनाने के लिए एक व्यापक कार्य योजना तैयार करना।

जनजातीय स्वास्थ्य में प्रमुख प्रयास और पहल:

केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoH&FW), AIIMS, और अन्य भागीदारों के साथ मिलकर जनजातीय स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल शुरू की हैं:

  1. भगवान बिरसा मुंडा चेयर ऑफ ट्राइबल हेल्थ एंड हेमेटोलॉजी: AIIMS दिल्ली में स्थापित इस चेयर का उद्देश्य जनजातीय स्वास्थ्य पर अनुसंधान और डेटा संग्रह के लिए एक बहु-विषयक मंच प्रदान करना है।
  2. सेंटर ऑफ कॉम्पिटेंस (CoC):
    • 14 राज्यों में 15 सेंटर ऑफ कॉम्पिटेंस (CoCs) को मंजूरी दी गई है।
    • इन केंद्रों का मुख्य उद्देश्य सिक सेल एनीमिया, जो जनजातीय समुदायों में एक आम आनुवंशिक समस्या है, का उन्नत और प्रसव पूर्व निदान सुनिश्चित करना है।
  3. सहयोगात्मक दृष्टिकोण: MoTA ने MoH&FW, MoAYUSH, MoWCD, NHM, AIIMS, CoCs, ICMR, UN एजेंसियों, NGOs, और राज्य जनजातीय कल्याण विभागों के साथ मिलकर प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए सहयोग किया है।

भारत में जनजातीय समुदाय: परंपरा, स्थिति और जनसंख्या:

  1. जनजातीय समुदायों की विशेषताएं:
    • जनजातीय समुदायों की अपनी समृद्ध परंपराएं, संस्कृति और विरासत होती है।
    • इनकी जीवनशैली और रीति-रिवाज अद्वितीय होते हैं।
    • जनजातीय समूह आमतौर पर भौगोलिक रूप से अलगथलग रहते हैं और समान आत्मनिर्भर होते हैं।
  2. भारत में जनजातीय स्थिति:
    • भारत में जनजातीय समूह सबसे पुराने मानववंशीय समूहों में से एक माने जाते हैं।
    • इन्हें अक्सर “आदिवासी” (मूल निवासी) कहा जाता है।
    • “आदिवासी” शब्द को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है, और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) इन्हें स्वदेशी (Indigenous) के रूप में वर्गीकृत करता है।
    • भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनजातीय जनसंख्या है, जिसमें लगभग 10 करोड़ आदिवासी शामिल हैं।
    • जनसंख्या के आंकड़े 2011 की जनगणना: के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या का8.9% जनजातीय समुदायों का हिस्सा है।
  3. भौगोलिक वितरण:
    • उत्तरपूर्वी राज्यों में जनजातीय समूहों की विशिष्ट जातीयता है, और वे मुख्यधारा से अधिक अलग-थलग रहते हैं।
    • केंद्रीय और दक्षिणी क्षेत्र में 80% से अधिक जनजातीय समुदाय बसते हैं, जहां इनका गैर-जनजातीय समुदायों से अधिक संपर्क होता है।

जनजातीय समुदायों के सामने चुनौतियां:

  1. सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: अपनी संस्कृति, परंपराओं और भाषा को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
  2. आर्थिक और सामाजिक असमानताएं: गरीबी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और शिक्षा तक सीमित पहुंच जनजातीय समुदायों की स्थिति को और जटिल बनाती है।
  3. अधिकार और संसाधनों की रक्षा: भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकारों को सुरक्षित करना एक महत्वपूर्ण समस्या है।
  4. रोजगार और आजीविका की समस्याएं: बेरोजगारी और आधुनिक कौशल प्रशिक्षण की कमी आर्थिक कठिनाइयों को बढ़ाती है।
  5. भेदभाव और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी की कमी: सामाजिक भेदभाव और नीति निर्माण में प्रतिनिधित्व की कमी उनकी स्थिति को कमजोर करती है।
  6.  पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों का ह्रास: आधुनिकरण के कारण जनजातीय समुदायों का पारंपरिक ज्ञान और संसाधन धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं।

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