संदर्भ:
जल संरक्षण में समुदायों की भूमिका: 22 मार्च को विश्व जल दिवस पर जल शक्ति मंत्रालय ने “जल शक्ति अभियान: कैच द रेन 2025“ लॉन्च किया, जिसमें जल संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी के महत्व पर जोर दिया गया।
जल संरक्षण में समुदायों की भूमिका:
- सामुदायिक सहभागिता (Community Involvement):
- मौजूदा जल नीतियाँ प्रबंधन (management) में समुदाय की भागीदारी को स्वीकृति देती हैं, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भूमिका सीमित है।
- उदाहरण: जल उपभोक्ता संघ (Water User Associations – WUAs) कानूनी रूप से गठित निकाय हैं, जहां किसान सिंचाई प्रणालियों का प्रबंधन करते हैं, लेकिन निर्णय लेने का अधिकार राज्य प्राधिकरणों के पास रहता है।
- निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करना (Grant Decision-making Power):
- जल प्रबंधन से जुड़े निर्णयों में स्थानीय समुदायों को अधिकार देना आवश्यक है।
- इससे सीधे प्रभावित लोगों की भागीदारी सुनिश्चित होगी और जल संसाधनों का स्थायी व न्यायसंगत उपयोग संभव होगा।
- पारंपरिक तकनीकों को मान्यता देना (Acknowledge Traditional Practices):
- सदियों से चली आ रही पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों को मान्यता दी जानी चाहिए।
- इन तकनीकों को आधुनिक जल प्रबंधन नीतियों में एकीकृत कर जल संरक्षण को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
जल संरक्षण की प्रमुख चुनौतियाँ और समाधान:
- हाशिए पर रहने वाले समुदायों की जल असुरक्षा:
- जल संकट का प्रभाव सभी सामाजिक समूहों पर समान नहीं पड़ता।
- आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित समुदायों को जल संकट का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है।
- इन समुदायों के पास पर्याप्त जल संसाधन और बुनियादी ढाँचे तक सीमित पहुँच होती है।
- समाधान:
- समान जल नीतियाँबनाई जाएँ, जिनमें हाशिए पर रहने वाले समुदायों की भागीदारी हो।
- पारंपरिक जल प्रबंधन ज्ञानको मान्यता दी जाए, जिससे जल संसाधनों का टिकाऊ उपयोग संभव हो।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया में हाशिए पर रहने वाले समूहों को शामिल करनाताकि वे नीतियों को आकार दे सकें।
- बिखरे हुए जल प्रशासन को सुधारना:
- भारत में जल प्रबंधन विभिन्न विभागों और नीतियों में विभाजित है, जिससे समन्वय की कमी होती है।
- जल, वन, भूमि और जैव विविधता अलग–अलग प्राधिकरणों द्वारा शासित होते हैं, जिससे अप्रभावी नीतियाँ बनती हैं।
- समाधान:
- समग्र (Integrated) जल नीति अपनाई जाए जो जल, भूमि, वन और जैव विविधता को जोड़कर देखे।
- पश्चिमी भारत के पारंपरिक पारिस्थितिकीय प्रथाओं (जैसे ओरण, पवित्र वन) से सीख लेकर जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाए।
- स्थानीय समुदायों को जल संरक्षण में नेतृत्व की भूमिका दी जाए ताकि उनके अनुभव और ज्ञान का उपयोग हो सके।
- मानव–केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ना:
- वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों को कानूनी अधिकार देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
- भारत की जल नीति अब भी केवल मानव आवश्यकताओं पर केंद्रित है।
- कुछ ग्रामीण समुदाय जल संरक्षण को पारिस्थितिकी के व्यापक संदर्भ में देखते हैं और वन्यजीवों के लिए जल उपलब्धता का ध्यान रखते हैं।
- समाधान:
- जलाशयों और नदियों को “जीवित इकाई“ के रूप में कानूनी अधिकार दिए जाएँ, जैसे अन्य देशों में हुआ है।
- समुदायों की जल–संरक्षण परंपराओं को नीति–निर्माण में शामिल किया जाए।
- जल संसाधनों को केवल इंसानों के लिए संसाधन मानने के बजाय, संपूर्ण पारिस्थितिकी के लिए आवश्यक तत्व के रूप में देखा जाए।