Sabka Bima Sabki Raksha Bill 2025

संदर्भ:
हाल ही में सरकार ने संसद में सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया। यह विधेयक 2047 तक सार्वभौमिक बीमा कवरेज के राष्ट्रीय लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम माना जा रहा है। यह पहल बीमा क्षेत्र में उदारीकरण, नियामकीय सरलीकरण और समावेशी वित्तीय सुरक्षा को एक साथ आगे बढ़ाने का प्रयास है।
भारत में बीमा कानून सुधार की आवश्यकता:
- भारत में बीमा क्षेत्र की कुल पैठ वित्त वर्ष 2023–24 में लगभग 3.7 प्रतिशत जीडीपी रही, जो समान अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है। इसमें भी जीवन बीमा का हिस्सा लगभग 2.8 प्रतिशत और गैर-जीवन बीमा मात्र 0.9 प्रतिशत रहा। यह असंतुलन दर्शाता है कि स्वास्थ्य, कृषि और आपदा जोखिम जैसे क्षेत्रों में पर्याप्त बीमा सुरक्षा उपलब्ध नहीं है।
- बीमा क्षेत्र में एलआईसी जैसी विरासत सार्वजनिक संस्थाओं का वर्चस्व भी प्रतिस्पर्धा और नवाचार को सीमित करता है। पूंजी की कमी, उन्नत डेटा प्रणालियों की आवश्यकता और वैश्विक अंडरराइटिंग विशेषज्ञता की कमी ने सुधारों को अपरिहार्य बना दिया।
सबका बीमा सबकी रक्षा विधेयक, 2025 के प्रमुख प्रावधान
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कानूनी ढांचे में संशोधन: यह विधेयक बीमा अधिनियम, 1938, भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 और आईआरडीएआई अधिनियम, 1999 में संशोधन का प्रस्ताव करता है। इसका उद्देश्य मौजूदा कानूनी ढांचे को नई नीतिगत प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाना है।
- FDI सीमा और NOF: विधेयक के तहत बीमा क्षेत्र में FDI सीमा 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। इससे विदेशी निवेशकों को भारतीय बीमा कंपनियों में पूर्ण स्वामित्व की अनुमति मिलेगी, हालांकि यह कानूनी और नियामकीय शर्तों के अधीन होगा। साथ ही नेट ओन्ड फंड (NOF) की आवश्यकता को ₹5,000 करोड़ से घटाकर ₹1,000 करोड़ किया गया है, जिससे नई कंपनियों के प्रवेश का मार्ग सरल होगा।
- IRDAI की भूमिका: विधेयक IRDAI को अधिक सशक्त बनाने का प्रस्ताव लाया गया है। नियामक को शासन, स्वामित्व सुरक्षा, ‘फिट एंड प्रॉपर’ मानदंड, तथा नीतिधारक संरक्षण के लिए स्पष्ट अधिकार दिए गए हैं। इसके साथ ही पॉलिसीधारक शिक्षा एवं संरक्षण कोष की स्थापना का प्रावधान भी शामिल है।
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एलआईसी में परिवर्तन: विधेयक में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) से जुड़े विशेष प्रावधान शामिल हैं। सरकार की हिस्सेदारी से जुड़े नियमों में लचीलापन लाकर एलआईसी को अन्य बीमा कंपनियों के समान शासन और पूंजी मानकों के अनुरूप लाने का प्रयास किया गया है।
- कॉरपोरेट गवर्नेंस: बोर्ड संरचना, जोखिम प्रबंधन और अंतिम लाभकारी स्वामित्व के प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाकर कॉरपोरेट गवर्नेंस को मजबूत किया गया है। बाजार में प्रवेश और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाकर प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा गया है।
प्रमुख सीमाएँ:
- हालांकि विधेयक महत्वाकांक्षी है, फिर भी इसमें समग्र (कॉम्पोजिट) बीमा लाइसेंस का अभाव एक बड़ी कमी मानी जा रही है। इससे एक ही कंपनी द्वारा जीवन, स्वास्थ्य और सामान्य बीमा की सुविधा संभव नहीं हो पाती।
- इसके अतिरिक्त, न्यूनतम चुकता पूंजी की वर्तमान ऊंची सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है, जिससे छोटे घरेलू कंपनियों के लिए प्रवेश कठिन बना रहता है। बीमा वितरण ढांचे में भी कोई व्यापक उदारीकरण नहीं किया गया, जिससे एजेंट बहु-बीमाकर्ता मॉडल अपनाने में असमर्थ रहते हैं।
- कॉरपोरेट जोखिम प्रबंधन के लिए कैप्टिव बीमा कंपनियों की अनुमति न देना भी एक कमी मानी जा रही है, जबकि कई विकसित देश इस मॉडल को अपनाते हैं।
