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सम्मान के साथ मरने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश

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हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सम्मान के साथ मरने का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के 2018 और 2023 के आदेशों को लागू करने के लिए मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश राज्य सरकारों और अस्पतालों को गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए जीवन रक्षक प्रणाली हटाने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

सम्मान के साथ मरने का अधिकार:

भारत में सम्मानपूर्वक मरने का अधिकार एक संवेदनशील और कानूनी रूप से महत्वपूर्ण अधिकार है, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को चिकित्सा उपचार से मना करने या जीवन-रक्षक प्रणाली हटाने का विकल्प प्रदान करता है।

सम्मान के साथ मरने का अधिकार और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश:

  1. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:
    • कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018): सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। इसे “लिविंग विल” या “अग्रिम निर्देश” के माध्यम से लागू किया जा सकता है।
    • 2023 का आदेश: कोर्ट ने “लिविंग विल” प्रक्रिया को सरल और स्पष्ट बनाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे मरीजों और अस्पतालों को एक सुव्यवस्थित रूपरेखा मिली।
  2. मसौदा दिशा-निर्देश (2024): स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2018 और 2023 के सुप्रीम कोर्ट आदेशों को लागू करने हेतु मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। ये दिशानिर्देश राज्य सरकारों और अस्पतालों को गंभीर रोगियों के जीवन-रक्षक उपचार हटाने की प्रक्रिया पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

जीवन-रक्षक उपचार रोकने या वापस लेने की प्रक्रिया:

  1. रोगी की सहमति: यदि रोगी निर्णय लेने में सक्षम है, तो वह जीवन-रक्षक उपचार से इनकार कर सकता है।
  2. अग्रिम निर्देश (“लिविंग विल”): यदि रोगी भविष्य में चिकित्सा देखभाल संबंधी अपनी इच्छाएं पहले से लिखित में दे देता है, तो इसे सम्मान दिया जाता है।
  3. रोगी की निर्णय लेने की क्षमता न हो तो: ऐसे मामलों में, प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड और माध्यमिक चिकित्सा बोर्ड का गठन कर रोगी की स्थिति का आकलन किया जाता है। यदि उपचार से कोई लाभ नहीं होने की संभावना है और इससे केवल पीड़ा बढ़ रही है, तो चिकित्सक और परिवार की सहमति से जीवन-रक्षक उपचार वापस लेने का निर्णय लिया जा सकता है।

प्रक्रिया में संरचना और निगरानी:

  1. प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड: इसमें न्यूनतम पांच वर्ष के अनुभव वाले दो विषय-वस्तु विशेषज्ञ होते हैं जो उपचार रोकने की उपयुक्तता का निर्धारण करते हैं।
  2. माध्यमिक चिकित्सा बोर्ड: इसके तहत, जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नियुक्त तीन विशेषज्ञ प्राथमिक बोर्ड के निर्णय की समीक्षा करते हैं।
  3. न्यायिक अधिसूचना: जीवन-रक्षक उपचार रोकने के निर्णय पर स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट को सूचित करना आवश्यक है।

जीवन समर्थन, DNAR आदेश, और उपचार से इंकार करने का अधिकार:

  • पुनर्जीवन का प्रयास न करें” (DNAR) आदेश: मरीज या परिवार के अनुरोध पर पुनर्जीवन न करने का निर्णय लिया जा सकता है। यह जीवन-रक्षक उपचार न देने के आदेश का हिस्सा है, न कि सभी उपचार रोकने का।
  • सम्मानपूर्वक मरने का अधिकार और इच्छामृत्यु: “इच्छामृत्यु” की जगह भारत में निष्क्रिय रूप से जीवन-रक्षक उपचार हटाने को मान्यता प्राप्त है। यह कानूनी ढांचा एक असाध्य रोगी की पीड़ा कम करने हेतु आवश्यक है।

लिविंग विल की प्रक्रिया:

  • लिविंग विल: व्यक्ति अपनी इच्छाओं को लिखित में दो साक्षियों और एक राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज कर सकता है, जिसमें वह अपने मेडिकल निर्णयों के लिए प्रतिनिधियों का नामांकन करता है।
  • साझा निर्णय-प्रक्रिया: यह प्रक्रिया परिवार और चिकित्सकों के बीच सहमति से होती है, जो कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है और नैतिक मानकों को बनाए रखती है।

जीवन-रक्षक उपचार को रोकने या वापस लेने की प्रक्रिया:

  1. प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड मूल्यांकन: अस्पताल में एक प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड गठित किया जाता है, जिसमें इलाज करने वाले डॉक्टर और कम से कम पांच वर्षों के अनुभव वाले दो विषय-वस्तु विशेषज्ञ शामिल होते हैं। यह बोर्ड मरीज की स्थिति का मूल्यांकन करता है और जीवन-रक्षक उपचार रोकने की उचितता पर विचार करता है।
  2. माध्यमिक चिकित्सा बोर्ड की समीक्षा: प्राथमिक बोर्ड के निर्णय की समीक्षा के लिए एक माध्यमिक चिकित्सा बोर्ड बनाया जाता है। इसमें जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नियुक्त एक पंजीकृत चिकित्सक और दो अन्य अनुभवी विशेषज्ञ शामिल होते हैं। इस बोर्ड का उद्देश्य अतिरिक्त निगरानी और समीक्षा प्रदान करना है।
  3. परिवार या प्रतिनिधि निर्णयकर्ताओं से सहमति: उपचार को रोकने या वापस लेने से पहले मरीज के परिवार या नामित प्रतिनिधियों की सहमति अनिवार्य है। यदि मरीज ने ‘लिविंग विल’ बना रखी है, तो उसमें निर्धारित निर्देशों का पालन किया जाता है।
  4. न्यायिक अधिसूचना: अस्पताल को निर्णय की जानकारी स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट को देनी होती है ताकि कानूनी प्रक्रिया की निगरानी सुनिश्चित हो सके।
  5. साझा निर्णय-प्रक्रिया और नैतिक जिम्मेदारी: यह प्रक्रिया डॉक्टरों और परिवारों के बीच सामंजस्य बनाकर निर्णय लेने को प्रोत्साहित करती है, ताकि सभी संबंधित पक्षों की इच्छाओं और भावनाओं का सम्मान किया जा सके।

इन सभी प्रावधानों से सम्मानपूर्वक मरने का अधिकार एक संरचित और कानूनी रूप से सुरक्षित ढांचा प्राप्त करता है, जो रोगियों, परिवारों और डॉक्टरों के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

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