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उच्च समुद्र संधि (High Seas Treaty) | UPSC Preparation

High Seas Treaty

High Seas Treaty

संदर्भ:

सितंबर में 60 से अधिक देशों द्वारा हाई सीज़ संधि (High Seas Treaty) को मंजूरी दी गई है, जो अब जनवरी 2026 से लागू होगी। यह संधि समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और उसके सतत उपयोग के लिए नियम निर्धारित करती है। इसके साथ ही यह जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक मछली पकड़ने और प्रदूषण से उत्पन्न खतरों का समाधान करने पर केंद्रित है।

हाई सीज़ संधि (High Seas Treaty): वैश्विक महासागरीय जैव विविधता की रक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम:

  • उद्देश्य: यह संधि उन समुद्री क्षेत्रों में जैव विविधता संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय ढांचा स्थापित करती है जो किसी भी देश के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
    ये क्षेत्र वैश्विक महासागर सतह के लगभग दो-तिहाई हिस्से को कवर करते हैं और जलवायु नियमन, कार्बन अवशोषण तथा खाद्य सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

सतत शासन के प्रमुख तंत्र:

  1. समुद्री आनुवंशिक संसाधन (MGRs):
    • इन्हें “मानव जाति की साझा विरासत” के रूप में मान्यता दी गई है।
    • इनमें समुद्री पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों से प्राप्त आनुवंशिक सामग्री शामिल है, जिसका उपयोग वैज्ञानिक, औषधीय और जैव-प्रौद्योगिकी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
  1. क्षेत्रआधारित प्रबंधन उपकरण (Area-Based Management Tools – ABMTs):
  • संधि के तहत Marine Protected Areas (MPAs) यानी समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाए जा सकेंगे ताकि जैव विविधता वाले संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा की जा सके।
  • इन क्षेत्रों की पहचान वैज्ञानिक आंकड़ों और पारंपरिक ज्ञान दोनों के आधार पर की जाएगी।
  1. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments – EIAs):
  • किसी भी ऐसी गतिविधि को शुरू करने से पहले अनिवार्य EIA कराना होगा जो समुद्री पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है।
  • इसका उद्देश्य संभावित नुकसान को रोकने के लिए पूर्व-निवारक कदम उठाना है।
  1. क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण:
  • विकसित और विकासशील देशों के बीच तकनीकी असमानता को ध्यान में रखते हुए, संधि क्षमता निर्माण और तकनीकी सहयोग को प्रोत्साहित करती है ताकि सभी देश समान रूप से महासागरीय अनुसंधान और शासन में भाग ले सकें।

संधि का विकासक्रम:

  • इस संधि को तैयार करने की प्रक्रिया लगभग दो दशकों तक चली।
  • 2004 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने UNCLOS में मौजूद खामियों को दूर करने के लिए एक कार्य समूह बनाया।
  • 2011 तक, देशों ने चार प्रमुख विषयों—MGRs, ABMTs, EIAs और क्षमता निर्माण—पर बातचीत करने पर सहमति जताई।
  • 2018 से 2023 के बीच चार अंतर-सरकारी सम्मेलन हुए, जिनके परिणामस्वरूप मार्च 2023 में समझौता हुआ।
  • जून 2023 में संधि को औपचारिक रूप से अपनाया गया, जिससे साझा महासागरीय शासन के एक नए युग की शुरुआत हुई।

मुख्य चुनौतियाँ:

  • सिद्धांतों का टकराव: “मानवता की साझा विरासत” और “खुले समुद्र की स्वतंत्रता” के बीच संतुलन बनाना कठिन है।
  • लाभसाझाकरण में अस्पष्टता: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से मिलने वाले लाभों की गणना, वितरण और निगरानी की स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।
  • प्रमुख शक्तियों की भागीदारी का अभाव: अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों द्वारा संधि की पुष्टि न करने से प्रवर्तन और वैधता कमजोर होती है।
  • संस्थागत ओवरलैप: अंतरराष्ट्रीय सागर प्राधिकरण (ISA) और क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों (RFMOs) जैसी संस्थाओं के साथ अधिकार क्षेत्र के टकराव की संभावना।
  • कार्यान्वयन संबंधी कठिनाइयाँ: उच्च समुद्रों में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना, निगरानी जटिल व महंगी है।
  • डेटा और क्षमता की कमी: वैज्ञानिक डेटा-साझाकरण और मूल्यांकन क्षमता के अभाव में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) प्रभावित होता है।
  • पर्यावरणीय परिवर्तनशीलता: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में हो रहे बदलावों से प्रबंधन रणनीतियों की निरंतर समीक्षा आवश्यक है।

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