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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। यह धारा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1985 का हिस्सा है और इसे असम आंदोलन के नेताओं और तत्कालीन केंद्र सरकार के बीच एक समझौते के तहत जोड़ा गया था। इसके माध्यम से, 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम में प्रवास करने वाले लोगों को नागरिकता प्रदान की गई थी।
धारा 6A पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
- विधायी क्षमता: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 6A को संसद की विधायी क्षमता के तहत लागू किया गया है, जो अनुच्छेद 246 और संघ सूची की प्रविष्टि 17 के तहत आता है। यह प्रविष्टि नागरिकता, प्राकृतिककरण और विदेशियों से संबंधित है।
- समानता का उल्लंघन: कोर्ट ने यह भी कहा कि असम के विशेष नागरिकता कानून का अनुच्छेद 14 (समानता) के तहत उल्लंघन नहीं है, क्योंकि असम में प्रवासियों की स्थिति शेष भारत की तुलना में अद्वितीय थी।
- संस्कृति पर प्रभाव: यह पाया गया कि प्रवासियों के आगमन से असमिया लोगों के सांस्कृतिक अधिकारों को कोई नुकसान नहीं हुआ है, और इस पर कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
- कटऑफ तिथि: 24 मार्च 1971 को कटऑफ तिथि के रूप में निर्धारित करना उचित है, क्योंकि इसी दिन पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था। इस तिथि के बाद आए प्रवासियों को युद्ध के प्रवासी माना गया है, जबकि इससे पहले के प्रवासियों को विभाजन के संदर्भ में देखा गया।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के बारे में:
- इस अधिनियम में नागरिकता प्राप्त करने के पांच तरीके बताए गए हैं: जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिककरण और क्षेत्र का समावेश।
- इसमें दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है, यानी एक व्यक्ति एक ही देश का नागरिक हो सकता है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019
- इस संशोधन में यह प्रावधान किया गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित कोई भी व्यक्ति, यदि 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुका है, तो उसे अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट ने असम में प्रवासियों की विशेष स्थिति को मान्यता दी है और नागरिकता के संदर्भ में भारतीय संविधान की प्रावधानों की व्याख्या की है। इससे असम समझौते की शर्तों को भी न्यायिक मान्यता मिली है।
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