सामान्य अध्ययन पेपर II: भारतीय संविधान, चुनाव, वैधानिक निकाय |
चर्चा में क्यों?
अगले साल 2026 से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने वाली है । यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, तो दक्षिणी राज्यों में लोकसभा सीटों में कमी हो सकती है, जबकि उत्तरी राज्यों में सीटें बढ़ सकती हैं। इसे लेकर दक्षिणी राज्यों ने विरोध करना शुरू कर दिया है।
परिसीमन का परिचय
परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य जनगणना के बाद संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या को पुनः व्यवस्थित करना और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करना होता है। परिसीमन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंख्या के हिसाब से समान प्रतिनिधित्व हो।
- भारतीय संविधान में परिसीमन की प्रक्रिया को एक अनिवार्य प्रावधान के रूप में वर्णित किया गया है।
- परिसीमन का मुख्य उद्देश्य “एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य” के सिद्धांत को लागू करना है, जिससे प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में समान जनसंख्या के आधार पर समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
- यह प्रक्रिया यह भी सुनिश्चित करती है कि राजनीतिक दलों के बीच चुनावी प्रतिस्पर्धा निष्पक्ष हो और किसी एक दल को विशेष लाभ न मिले।
- भारतीय संविधान में परिसीमन के लिए विशेष प्रावधान हैं। संसद को परिसीमन का अधिकार प्राप्त है, और यह अधिकार चार प्रमुख परिसीमन आयोग अधिनियमों के माध्यम से प्रयोग में लाया गया है: 1952, 1962, 1972 और 2002 में।
- 42वां संशोधन (1976): इस संशोधन के तहत लोकसभा सीटों की संख्या को 1971 की जनगणना तक स्थिर रखा गया था।
- 84वां संशोधन (2001): इस संशोधन ने 1991 की जनगणना के आधार पर परिसीमन को वैध किया, लेकिन राज्य की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ।
- 87वां संशोधन (2003): इसके तहत परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया, लेकिन सीटों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं किया गया।
भारतीय संविधान में परिसीमन की स्थिति
भारतीय संविधान में परिसीमन की प्रक्रिया और इसके प्रावधानों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसका उद्देश्य लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व का पुनर्विभाजन करना है।
- अनुच्छेद 81: अनुच्छेद 81 के अनुसार, लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या 550 से अधिक नहीं हो सकती, जिसमें 530 सदस्य राज्यों से और 20 सदस्य संघ क्षेत्रों से होंगे। यह प्रावधान लोकसभा में अधिकतम सीटों की संख्या को सीमित करता है, ताकि प्रतिनिधित्व का संतुलन सही रूप से बना रहे।
- अनुच्छेद 82: अनुच्छेद 82 के अनुसार, हर जनगणना के बाद संसद को परिसीमन अधिनियम पारित करने का अधिकार प्राप्त है। इस अधिनियम के तहत, लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाता है ताकि प्रत्येक राज्य की जनसंख्या में बदलाव के अनुसार सीटों का संतुलन बनाए रखा जा सके।
- अनुच्छेद 170: अनुच्छेद 170 राज्य विधानसभाओं से संबंधित है। इस अनुच्छेद के तहत, परिसीमन के बाद राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या को समायोजित किया जाता है, ताकि प्रत्येक राज्य में सीटों का वितरण जनसंख्या के आधार पर संतुलित हो। इस प्रक्रिया के तहत, प्रत्येक राज्य को उसके जनसंख्या आकार के अनुसार प्रतिनिधित्व मिलता है।
परिसीमन प्रक्रिया के लाभ
- समान प्रतिनिधित्व: परिसीमन का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक का वोट समान मूल्य रखता है। जब निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं जनसंख्या के अनुसार पुनः निर्धारित की जाती हैं, तो यह सुनिश्चित होता है कि सभी क्षेत्रों में जनसंख्या का संतुलन बना रहे, जिससे हर राज्य और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व समान रूप से किया जा सके।
- लोकतांत्रिक संतुलन: परिसीमन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी प्रतिनिधित्व समान और निष्पक्ष हो, जिससे किसी एक पार्टी को अतिरिक्त लाभ नहीं मिल पाता। इसके माध्यम से लोकतंत्र की मूल भावना, “हर नागरिक की आवाज़ संसद तक पहुंचे”, को साकार किया जाता है।
- विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व: परिसीमन, न केवल जनसंख्या संतुलन सुनिश्चित करता है, बल्कि यह अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने में भी मदद करता है। इसके द्वारा इन वर्गों को संसद और विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।
- भौगोलिक क्षेत्र: परिसीमन का एक अन्य लाभ यह है कि यह भौगोलिक क्षेत्रों के न्यायसंगत विभाजन को सुनिश्चित करता है, जिससे चुनावों में किसी एक पार्टी को भौतिक रूप से फायदेमंद नहीं बनाया जा सकता। यह प्रक्रिया चुनावी मुकाबलों को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाती है, जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है।
परिसीमन की प्रक्रिया कौन संचालित करता है?
- परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है, जो संसद द्वारा बनाए गए अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है। यह आयोग परिसीमन की प्रक्रिया को संचालित करने और उसकी निगरानी करने के लिए जिम्मेदार होता है।
- परिसीमन आयोग को भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और यह भारत निर्वाचन आयोग के साथ सहयोग करते हुए कार्य करता है।
- आयोग का प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परिसीमन प्रक्रिया निष्पक्ष और संविधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो।
- आयोग द्वारा किए गए निर्णयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालांकि, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि परिसीमन आदेश संविधानिक मूल्यों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।
- परिसीमन आयोग में तीन प्रमुख सदस्य होते हैं:
- अध्यक्ष: एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश
- सदस्य: भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) या उनका नियुक्त किया गया कोई अन्य सदस्य
- सदस्य: संबंधित राज्य के चुनाव आयुक्त
परिसीमन प्रक्रिया के चरण
- मसौदा प्रस्ताव का प्रकाशन: परिसीमन आयोग, परिसीमन प्रक्रिया के प्रारंभिक चरण में, अपने मसौदा प्रस्तावों को जनता से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए प्रकाशित करता है। यह प्रस्ताव भारत के राजपत्र, संबंधित राज्यों के आधिकारिक राजपत्रों और कम से कम दो प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किए जाते हैं। इस चरण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनता को इस प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी मिले और वे अपने विचार प्रस्तुत कर सकें।
- सार्वजनिक बैठकों का आयोजन: मसौदा प्रस्तावों को प्रकाशित करने के बाद, आयोग सार्वजनिक बैठकों का आयोजन करता है। इन बैठकों में आम जनता, राजनीतिक दलों और अन्य संबंधित पक्षों से प्रतिक्रियाएँ ली जाती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, सभी पक्षों को उनके विचार और सुझाव प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है, ताकि परिसीमन की प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो सके।
- आपत्तियाँ और सुझावों पर विचार: सार्वजनिक बैठकों में प्राप्त आपत्तियों और सुझावों पर आयोग विचार करता है। यह विचार लिखित या मौखिक रूप से प्राप्त होते हैं और यदि आयोग को लगता है कि इनमें से कोई सुझाव या आपत्ति उचित है, तो वह मसौदा प्रस्ताव में आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।
- अंतिम आदेश का प्रकाशन: जब आयोग अपने मसौदा प्रस्ताव पर विचार कर चुका होता है और आवश्यक बदलाव कर चुका होता है, तो अंतिम आदेश को भारत के राजपत्र और राज्य के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है। इसके बाद, यह आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि से लागू होता है और परिसीमन प्रक्रिया पूरी तरह से कार्यान्वित हो जाती है।
दक्षिणी राज्यों की परिसीमन संबंधी चिंता
- जनसंख्या वृद्धि का असर: उत्तर भारत के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि में उच्च जनसंख्या वृद्धि हुई है, जिससे ये राज्य परिसीमन के बाद अधिक सीटें प्राप्त कर सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, दक्षिणी राज्यों को प्रतिनिधित्व में कमी का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें लगता है कि उनके राज्य के प्रतिनिधित्व में गिरावट आएगी, भले ही उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण और बेहतर शासन के प्रयास किए हों।
- सीटों में अल्प वृद्धि: यदि परिसीमन के दौरान प्रति सीट औसत जनसंख्या को 10.11 लाख रखा जाता है, तो लोकसभा की सीटों की संख्या लगभग 1,400 तक बढ़ सकती है। उत्तर प्रदेश (जिसमें उत्तराखंड भी शामिल है) की सीटें 85 से बढ़कर 250 हो सकती हैं, वहीं, तमिलनाडु में सीटों में 39 से बढ़कर 76, केवल मामूली वृद्धि हो सकती है।
- राजनीतिक प्रभाव: दक्षिणी राज्यों का मानना है कि भले ही किसी भी फार्मूले का पालन किया जाए, उन्हें उत्तरी राज्यों की तुलना में कम सीटें ही मिलेंगी, जिससे इन राज्यों का राजनीतिक प्रभाव कमजोर होगा। जिससे उनका संसद में प्रभाव कम हो जाएगा।
UPSC पिछले वर्ष का प्रश्न (PYQ) प्रश्न (2012): परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 (b) केवल 2 (c) 1 और 2 दोनों (d) न तो 1 और न ही 2 उत्तर: (c) |
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