India-US Energy and Defense Cooperation
संदर्भ:
हाल ही में अमेरिका की उपराष्ट्रपति ने ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में भारत के साथ और अधिक घनिष्ठ सहयोग की इच्छा जताई है। वहीं भारत की विदेश नीति से जुड़े अधिकारियों ने ऊर्जा, रक्षा, प्रौद्योगिकी (technology) और लोगों की आवाजाही (mobility of people) के क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया है।
भारत–अमेरिका ऊर्जा और रक्षा सहयोग: प्रमुख जानकारी
ऊर्जा सुरक्षा में सहयोग
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा के तीन प्रमुख आयाम:
- स्थिर और पूर्वानुमेय ऊर्जा संसाधन: भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना।
- आपूर्ति शृंखला में व्यवधान कम करना: महत्वपूर्ण खनिजों और ऊर्जा अवसंरचना के लिए आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत बनाना, ताकि भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं पर निर्भरता कम हो।
- सततता को बढ़ावा देना: भारत के नेट-जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए परमाणु ऊर्जा और स्वच्छ तकनीकों की भूमिका का विस्तार करना।
स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में भूमिका
- परमाणु ऊर्जा और महत्वपूर्ण खनिज:
- भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका।
- भारत-अमेरिका ऊर्जा और प्रौद्योगिकी साझेदारी के लिए आधारभूत स्तंभ।
भारत की परमाणु ऊर्जा सुरक्षा: प्रमुख जानकारी
- वर्तमान क्षमता: 8 GW से अधिक, कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 2%।
- 2047 लक्ष्य: 100 GW; 2030 के दशक से प्रति वर्ष 5-6 GW का संचालन आवश्यक।
- नेट जीरो (2070): CEEW के अनुसार कुछ परिदृश्यों में 200 GW क्षमता की आवश्यकता।
- महत्व: स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य और ऊर्जा सुरक्षा में प्रमुख भूमिका।
आपूर्ति शृंखला में पारदर्शिता: महत्वपूर्ण खनिजों पर भारत–अमेरिका सहयोग
- भारत–अमेरिका क्रिटिकल मिनरल्स कंसोर्टियम: अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में संयुक्त खनन और प्रसंस्करण परियोजनाओं का अन्वेषण।
- खनिज विनिमय मंच:
- स्थापना: भारत-अमेरिका मिनरल एक्सचेंज (सुरक्षित डिजिटल प्लेटफॉर्म)।
- उद्देश्य: रियल-टाइम व्यापार, निवेश निगरानी और खनिज की पहचान।
- ब्लॉकचेन–आधारित ट्रैसेबिलिटी मानक:
- प्रेरणा: EU के बैटरी पासपोर्ट से।
- लाभ: आपूर्ति शृंखला में व्यवधान रोकना और नैतिक सोर्सिंग सुनिश्चित करना।
संयुक्त रणनीतिक खनिज भंडार:
- उपयोग: भारत के स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व और अमेरिकी नेशनल डिफेंस स्टॉकपाइल।
- लाभ: कम लागत पर तैनाती।
ऊर्जा अवसंरचना में निवेश:
- प्लेटफॉर्म: यू.एस.-इंडिया क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET)।
- उद्देश्य: डेटा साझाकरण, नवाचार गलियारे और कार्यबल विकास को बढ़ावा देना।
महत्वपूर्ण खनिजों पर भारत–अमेरिका सहयोग:
- दीर्घकालिक रणनीति: महत्वपूर्ण खनिजों का उपयोग करने वाले क्षेत्रों (स्वच्छ ऊर्जा, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स) में कौशल और तकनीकी विनिमय को प्राथमिकता देना।
- प्रमुख सहयोग बिंदु:
- संयुक्त खनन और प्रसंस्करण: महत्वपूर्ण खनिजों का मिलकर अन्वेषण और उत्पादन।
- सह–निवेश: खनिज संपन्न देशों (अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका) में संयुक्त निवेश।
- खनिज विनिमय मंच: भारत-अमेरिका मिनरल एक्सचेंज (डिजिटल प्लेटफॉर्म) से व्यापार और निवेश पर नज़र।
- ब्लॉकचेन–आधारित ट्रैकिंग: यूरोप के बैटरी पासपोर्ट की तर्ज पर पारदर्शिता।
- संयुक्त खनिज भंडार: भविष्य में आपूर्ति व्यवधान से बचाव के लिए।
- दीर्घकालिक साझेदारी:
- खदानों और प्रसंस्करण संयंत्रों को पूरी तरह से विकसित करने में 12-16 साल लगते हैं, इसलिए दीर्घकालिक योजना आवश्यक।
- उन्नति के लिए नवाचार: iCET (भारत-अमेरिका क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पहल) जैसे प्लेटफॉर्म से नवाचार को प्रोत्साहन।