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संदर्भ:
पंचायती राज: संविधान के अंगीकरण के 75 वर्ष और 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के 32 से अधिक वर्ष पूरे होने के बाद, पंचायती राज संस्थान (PRI) गिरावट के दौर से गुजर रहा है।
भारत में पंचायती राज :
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- प्राचीन भारत में पंचायती राज की जड़ें पाई जाती हैं, जहाँ ग्राम सभाएँ (पंचायतें) स्थानीय शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।
- महात्मा गांधी ने “ग्राम स्वराज” की अवधारणा दी, जिसमें गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया गया।
- 1992 में 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा मिला।
पंचायती राज की त्रि–स्तरीय संरचना:
- ग्राम पंचायत– गाँव स्तर पर
- पंचायत समिति– ब्लॉक (खंड) स्तर पर
- जिला परिषद– जिला स्तर पर
73वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम (1992):
परिचय:
- 1992 के 73वें संशोधन ने ग्रामीण भारत में विकेन्द्रीकरण (Decentralization) को संस्थागत रूप दिया।
- इस संशोधन के तहत त्रि–स्तरीय पंचायती राज प्रणाली (ग्राम, ब्लॉक, जिला स्तर) स्थापित की गई।
मुख्य विशेषताएँ:
- नियमित चुनाव– पंचायतों के लिए समयबद्ध चुनाव सुनिश्चित किए गए।
- 50% आरक्षण– महिलाओं, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए।
- लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण– स्थानीय शासन को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
- राज्य वित्त आयोग (State Finance Commission)– पंचायतों को वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने के लिए गठित।
पंचायतों के सामने चुनौतियाँ:
- सीमित प्रशासनिक अधिकार
- राज्यों ने पंचायतों को पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण हस्तांतरित नहीं किया है।
- केवल 20% राज्यों ने ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों को पंचायतों को सौंपा है।
- वित्तीय स्वायत्तता में कमी
- केंद्रीय हस्तांतरण ₹1.45 लाख करोड़ (2010-15) से बढ़कर ₹2.36 लाख करोड़ (2021-26) हुआ।
- हालांकि, गैर-निर्धारित (untied) अनुदान 85% (तेरहवां वित्त आयोग) से घटकर 60% (पंद्रहवां वित्त आयोग) रह गया, जिससे स्थानीय निर्णय लेने की क्षमता सीमित हो गई।
- स्थानीय जवाबदेही में गिरावट
- जन धन–आधार–मोबाइल (JAM) प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) पंचायतों को दरकिनार कर देता है।
- पीएम–किसान योजना (₹6,000 वार्षिक सहायता) जैसे कार्यक्रम पंचायतों की भागीदारी के बिना लागू किए जाते हैं।
- शहरीकरण का प्रभाव
- 1990 में 75% भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे, अब यह घटकर 60% रह गया।
- नीति निर्माण में अब प्राथमिकता शहरी प्रशासन और नगरपालिका सुधारों को दी जा रही है, जिससे पंचायतों की भूमिका कमजोर हो रही है।
निष्कर्ष: पंचायती राज प्रणाली विकेन्द्रीकृत शासन का एक प्रभावी उपकरण है, लेकिन वर्तमान में यह वित्तीय, प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौतियों के कारण संकट में है। पंचायतों को पर्याप्त वित्तीय स्वायत्तता, क्षमता निर्माण और जवाबदेही तंत्र से सशक्त बनाकर इस व्यवस्था को पुनर्जीवित किया जा सकता है।